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+ | भले दिनों की बात थी | ||
+ | भली सी एक शक्ल थी | ||
+ | ना ये कि हुस्ने ताम हो | ||
+ | ना देखने में आम सी | ||
− | + | ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे | |
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− | + | कोई भी रुत हो उसकी छब | |
− | + | फ़जा का रंग रूप थी | |
+ | वो गर्मियों की छांव थी | ||
+ | वो सर्दियों की धूप थी | ||
− | + | ना मुद्दतों जुदा रहे | |
− | + | ना साथ सुबहो शाम हो | |
− | + | ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद | |
− | + | ना ये कि इज्ने आम हो | |
− | ना | + | ना ऐसी खुश लिबासियां |
− | + | कि सादगी हया करे | |
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− | ना | + | ना इखतिलात में वो रम |
− | कि | + | कि बदमजा हो ख्वाहिशें |
− | ना | + | ना इस कदर सुपुर्दगी |
− | + | कि ज़िच करे नवाजिशें | |
− | ना | + | ना आशिकी ज़ुनून की |
− | कि | + | कि ज़िन्दगी अजाब हो |
− | ना इस कदर | + | ना इस कदर कठोरपन |
− | कि | + | कि दोस्ती खराब हो |
− | + | कभी तो बात भी खफ़ी | |
− | + | कभी सुकूत भी सुखन | |
− | + | कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां | |
− | + | कभी उदासियों का बन | |
− | + | सुना है एक उम्र है | |
− | + | मुआमलाते दिल की भी | |
− | + | विसाले-जाँफ़िजा तो क्या | |
− | + | फ़िराके-जाँ-गुसल की भी | |
− | + | सो एक रोज क्या हुआ | |
− | + | वफ़ा पे बहस छिड़ गई | |
− | + | मैं इश्क को अमर कहूं | |
− | + | वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई | |
− | + | मैं इश्क का असीर था | |
− | + | वो इश्क को कफ़स कहे | |
− | मैं इश्क को | + | कि उम्र भर के साथ को |
− | वो | + | वो बदतर अज़ हवस कहे |
− | + | शजर हजर नहीं कि हम | |
− | + | हमेशा पा ब गिल रहें | |
− | कि | + | ना ढोर हैं कि रस्सियां |
− | + | गले में मुस्तकिल रहें | |
− | + | मोहब्बतें की वुसअतें | |
− | + | हमारे दस्तो पा में हैं | |
− | + | बस एक दर से निस्बतें | |
− | + | सगाने-बावफ़ा में हैं | |
− | + | मैं कोई पेन्टिंग नहीं | |
− | + | कि एक फ़्रेम में रहूं | |
− | + | वही जो मन का मीत हो | |
− | + | उसी के प्रेम में रहूं | |
− | मैं | + | तुम्हारी सोच जो भी हो |
− | + | मैं उस मिजाज की नहीं | |
− | + | मुझे वफ़ा से बैर है | |
− | + | ये बात आज की नहीं | |
− | + | न उसको मुझपे मान था | |
− | + | न मुझको उसपे ज़ोम ही | |
− | + | जो अहद ही कोई ना हो | |
− | + | तो क्या गमे शिकस्तगी | |
− | + | सो अपना अपना रास्ता | |
− | + | हंसी खुशी बदल दिया | |
− | + | वो अपनी राह चल पड़ी | |
− | + | मैं अपनी राह चल दिया | |
− | + | भली सी एक शक्ल थी | |
− | + | भली सी उसकी दोस्ती | |
− | + | अब उसकी याद रात दिन | |
− | + | नहीं, मगर कभी कभी | |
− | + | हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत | |
− | + | हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी | |
− | + | किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन, | |
− | + | फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना, | |
− | + | अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश | |
− | हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत | + | मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध |
− | हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी | + | सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम |
− | किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन, | + | </poem> |
− | फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना, | + | |
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20:40, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
भले दिनों की बात थी
भली सी एक शक्ल थी
ना ये कि हुस्ने ताम हो
ना देखने में आम सी
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे
कोई भी रुत हो उसकी छब
फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी
ना मुद्दतों जुदा रहे
ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
ना ये कि इज्ने आम हो
ना ऐसी खुश लिबासियां
कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी
की आईना हया करे
ना इखतिलात में वो रम
कि बदमजा हो ख्वाहिशें
ना इस कदर सुपुर्दगी
कि ज़िच करे नवाजिशें
ना आशिकी ज़ुनून की
कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन
कि दोस्ती खराब हो
कभी तो बात भी खफ़ी
कभी सुकूत भी सुखन
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां
कभी उदासियों का बन
सुना है एक उम्र है
मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी
सो एक रोज क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई
मैं इश्क का असीर था
वो इश्क को कफ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बदतर अज़ हवस कहे
शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा ब गिल रहें
ना ढोर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्तकिल रहें
मोहब्बतें की वुसअतें
हमारे दस्तो पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगाने-बावफ़ा में हैं
मैं कोई पेन्टिंग नहीं
कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूं
तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं
न उसको मुझपे मान था
न मुझको उसपे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई ना हो
तो क्या गमे शिकस्तगी
सो अपना अपना रास्ता
हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया
भली सी एक शक्ल थी
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी
हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत
हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी
किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,
फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,
अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश
मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम