भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भले दिनों की बात थी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
भले दिनों की बात थी
 +
भली सी एक शक्ल थी
 +
ना ये कि हुस्ने ताम हो
 +
ना देखने में आम सी
  
'''भले दिनों की बात थी'''<br><br>
+
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे
भले दिनों की बात थी<br>
+
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे
भली सी एक शक्ल थी<br>
+
ना ये कि हुस्ने ताम हो<br>
+
ना देखने में आम सी<br><br>
+
  
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे<br>
+
कोई भी रुत हो उसकी छब
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे<br><br>
+
फ़जा का रंग रूप थी
 +
वो गर्मियों की छांव थी
 +
वो सर्दियों की धूप थी
  
कोई भी रुत हो उसकी छब<br>
+
ना मुद्दतों जुदा रहे
फ़जा का रंग रूप थी<br>
+
ना साथ सुबहो शाम हो
वो गर्मियों की छांव थी<br>
+
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
वो सर्दियों की धूप थी<br><br>
+
ना ये कि इज्ने आम हो
  
ना मुद्दतों जुदा रहे<br>
+
ना ऐसी खुश लिबासियां
ना साथ सुबहो शाम हो<br>
+
कि सादगी हया करे
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद<br>
+
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी
ना ये कि इज्ने आम हो<br><br>
+
की आईना हया करे
  
ना ऐसी खुश लिबासियां<br>
+
ना इखतिलात में वो रम
कि सादगी हया करे<br>
+
कि बदमजा हो ख्वाहिशें
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी<br>
+
ना इस कदर सुपुर्दगी
की आईना हया करे<br><br>
+
कि ज़िच करे नवाजिशें
  
ना इखतिलात में वो रम<br>
+
ना आशिकी ज़ुनून की
कि बदमजा हो ख्वाहिशें<br>
+
कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर सुपुर्दगी <br>
+
ना इस कदर कठोरपन
कि ज़िच करे नवाजिशें<br><br>
+
कि दोस्ती खराब हो
  
ना आशिकी ज़ुनून की<br>
+
कभी तो बात भी खफ़ी
कि ज़िन्दगी अजाब हो<br>
+
कभी सुकूत भी सुखन
ना इस कदर कठोरपन<br>
+
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां
कि दोस्ती खराब हो<br><br>
+
कभी उदासियों का बन
  
कभी तो बात भी खफ़ी<br>
+
सुना है एक उम्र है
कभी सुकूत भी सुखन<br>
+
मुआमलाते दिल की भी
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां<br>
+
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या
कभी उदासियों का बन<br><br>
+
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी
  
सुना है एक उम्र है <br>
+
सो एक रोज क्या हुआ
मुआमलाते दिल की भी<br>
+
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या<br>
+
मैं इश्क को अमर कहूं
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी<br><br>
+
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई
  
सो एक रोज क्या हुआ<br>
+
मैं इश्क का असीर था
वफ़ा पे बहस छिड़ गई<br>
+
वो इश्क को कफ़स कहे
मैं इश्क को अमर कहूं <br>
+
कि उम्र भर के साथ को
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई<br><br>
+
वो बदतर अज़ हवस कहे
  
मैं इश्क का असीर था<br>
+
शजर हजर नहीं कि हम
वो इश्क को कफ़स कहे<br>
+
हमेशा पा ब गिल रहें
कि उम्र भर के साथ को<br>
+
ना ढोर हैं कि रस्सियां
वो बदतर अज़ हवस कहे<br><br>
+
गले में मुस्तकिल रहें
  
शजर हजर नहीं कि हम <br>
+
मोहब्बतें की वुसअतें
हमेशा पा ब गिल रहें<br>
+
हमारे दस्तो पा में हैं
ना ढोर हैं कि रस्सियां<br>
+
बस एक दर से निस्बतें
गले में मुस्तकिल रहें<br><br>
+
सगाने-बावफ़ा में हैं
  
मोहब्बतें की वुसअतें<br>
+
मैं कोई पेन्टिंग नहीं
हमारे दस्तो पा में हैं<br>
+
कि एक फ़्रेम में रहूं
बस एक दर से निस्बतें<br>
+
वही जो मन का मीत हो
सगाने-बावफ़ा में हैं<br><br>
+
उसी के प्रेम में रहूं
  
मैं कोई पेन्टिंग नहीं<br>
+
तुम्हारी सोच जो भी हो
कि एक फ़्रेम में रहूं<br>
+
मैं उस मिजाज की नहीं
वही जो मन का मीत हो<br>
+
मुझे वफ़ा से बैर है
उसी के प्रेम में रहूं<br><br>
+
ये बात आज की नहीं
  
तुम्हारी सोच जो भी हो<br>
+
न उसको मुझपे मान था
मैं उस मिजाज की नहीं<br>
+
न मुझको उसपे ज़ोम ही
मुझे वफ़ा से बैर है<br>
+
जो अहद ही कोई ना हो
ये बात आज की नहीं<br><br>
+
तो क्या गमे शिकस्तगी
  
न उसको मुझपे मान था<br>
+
सो अपना अपना रास्ता
न मुझको उसपे ज़ोम ही<br>
+
हंसी खुशी बदल दिया
जो अहद ही कोई ना हो<br>
+
वो अपनी राह चल पड़ी
तो क्या गमे शिकस्तगी<br><br>
+
मैं अपनी राह चल दिया
  
सो अपना अपना रास्ता<br>
+
भली सी एक शक्ल थी
हंसी खुशी बदल दिया<br>
+
भली सी उसकी दोस्ती
वो अपनी राह चल पड़ी<br>
+
अब उसकी याद रात दिन
मैं अपनी राह चल दिया<br><br>
+
नहीं, मगर कभी कभी
  
भली सी एक शक्ल थी<br>
+
हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत
भली सी उसकी दोस्ती<br>
+
हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती,  रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी
अब उसकी याद रात दिन<br>
+
किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,
नहीं, मगर कभी कभी<br><br>
+
फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,
 
+
अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश
हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत<br>
+
मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध
हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती,  रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी<br>
+
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम
किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,<br>
+
</poem>
फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,<br>
+
अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश<br>
+
मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध<br>
+
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम<br>
+

20:40, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

भले दिनों की बात थी
भली सी एक शक्ल थी
ना ये कि हुस्ने ताम हो
ना देखने में आम सी

ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे

कोई भी रुत हो उसकी छब
फ़जा का रंग रूप थी
वो गर्मियों की छांव थी
वो सर्दियों की धूप थी

ना मुद्दतों जुदा रहे
ना साथ सुबहो शाम हो
ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद
ना ये कि इज्ने आम हो

ना ऐसी खुश लिबासियां
कि सादगी हया करे
ना इतनी बेतकल्लुफ़ी
की आईना हया करे

ना इखतिलात में वो रम
कि बदमजा हो ख्वाहिशें
ना इस कदर सुपुर्दगी
कि ज़िच करे नवाजिशें

ना आशिकी ज़ुनून की
कि ज़िन्दगी अजाब हो
ना इस कदर कठोरपन
कि दोस्ती खराब हो

कभी तो बात भी खफ़ी
कभी सुकूत भी सुखन
कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां
कभी उदासियों का बन

सुना है एक उम्र है
मुआमलाते दिल की भी
विसाले-जाँफ़िजा तो क्या
फ़िराके-जाँ-गुसल की भी

सो एक रोज क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई

मैं इश्क का असीर था
वो इश्क को कफ़स कहे
कि उम्र भर के साथ को
वो बदतर अज़ हवस कहे

शजर हजर नहीं कि हम
हमेशा पा ब गिल रहें
ना ढोर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्तकिल रहें

मोहब्बतें की वुसअतें
हमारे दस्तो पा में हैं
बस एक दर से निस्बतें
सगाने-बावफ़ा में हैं

मैं कोई पेन्टिंग नहीं
कि एक फ़्रेम में रहूं
वही जो मन का मीत हो
उसी के प्रेम में रहूं

तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं उस मिजाज की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं

न उसको मुझपे मान था
न मुझको उसपे ज़ोम ही
जो अहद ही कोई ना हो
तो क्या गमे शिकस्तगी

सो अपना अपना रास्ता
हंसी खुशी बदल दिया
वो अपनी राह चल पड़ी
मैं अपनी राह चल दिया

भली सी एक शक्ल थी
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात दिन
नहीं, मगर कभी कभी

हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत
हया - शर्म, इखतिलात - दोस्ती, रम - वहशत, खफ़ी - छिपी हुई, चुप्पी
किश्ते ज़ाफ़राँ - केसर की क्यारी, विसाले जाँफ़िजा - प्राणवर्धक मिलन,
फ़िराके जाँ गुसिल - प्राण घातक दूरी, असीर - कैदी, कफ़स - पिन्जरा, कैद खाना,
अज हवस - हवस से भी खराब, शजर - पेड, हजर - पत्थर, पा-ब-गिल - विवश
मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम