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"मौत : दो / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर
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वह रोज़ कमाता | वह रोज़ कमाता |
02:05, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
वह रोज़ कमाता
रोज़ खाता
रोज़ लुटता उसका अधिकांश हिस्सा
बचे-खुचे हिस्से से
आधा—अधूरा भरता
परिवार का पेट
वह आहिस्ता-आहिस्ता
रोज़ मर रहा था
और आज मर ही गया
शहर बेख़बर है
कि वह मर गया