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जलती-बुझती रही
 
जलती-बुझती रही
 
 
दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली।
 
दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली।
 
 
वर्षा थी,
 
वर्षा थी,
 
 
यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
  
 
सुबह-सुबह आवारा बादल गोली दाग़ गया
 
सुबह-सुबह आवारा बादल गोली दाग़ गया
 
 
सूरज का चपरासी डरकर
 
सूरज का चपरासी डरकर
 
 
घर को भाग गया
 
घर को भाग गया
 
 
गीले मेज़पोश वाली-
 
गीले मेज़पोश वाली-
 
 
भू-मेज़ रही इकली।
 
भू-मेज़ रही इकली।
 
 
वर्षा थी, यूँ अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
वर्षा थी, यूँ अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
  
 
आज न आई आशुलेखिका कोई किरण-परी
 
आज न आई आशुलेखिका कोई किरण-परी
 
 
विहग-लिपिक ने
 
विहग-लिपिक ने
 
 
आज न खोली पंखों की छतरी
 
आज न खोली पंखों की छतरी
 
 
सी-सी करती पवन
 
सी-सी करती पवन
 
 
पिच गई स्यात् कहीं उँगली।
 
पिच गई स्यात् कहीं उँगली।
 
 
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
  
 
ख़ाली पड़ी सड़क की फ़ाइल कोई शब्द नहीं
 
ख़ाली पड़ी सड़क की फ़ाइल कोई शब्द नहीं
 
 
स्याही बहुत
 
स्याही बहुत
 
 
किंतु कोई लेखक उपलब्ध नहीं
 
किंतु कोई लेखक उपलब्ध नहीं
 
 
सिर्फ़ अकेलेपन की छाया
 
सिर्फ़ अकेलेपन की छाया
 
 
कुर्सी से उछली।
 
कुर्सी से उछली।
 
 
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।
 
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'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<
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18:35, 31 मार्च 2011 के समय का अवतरण

जलती-बुझती रही
दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली।
वर्षा थी,
यों अपने घर से धूप नहीं निकली।

सुबह-सुबह आवारा बादल गोली दाग़ गया
सूरज का चपरासी डरकर
घर को भाग गया
गीले मेज़पोश वाली-
भू-मेज़ रही इकली।
वर्षा थी, यूँ अपने घर से धूप नहीं निकली।

आज न आई आशुलेखिका कोई किरण-परी
विहग-लिपिक ने
आज न खोली पंखों की छतरी
सी-सी करती पवन
पिच गई स्यात् कहीं उँगली।
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।

ख़ाली पड़ी सड़क की फ़ाइल कोई शब्द नहीं
स्याही बहुत
किंतु कोई लेखक उपलब्ध नहीं
सिर्फ़ अकेलेपन की छाया
कुर्सी से उछली।
वर्षा थी, यों अपने घर से धूप नहीं निकली।