भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हर सुबह / रमेश पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय }} '''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त ...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
+
|रचनाकार=रमेश पाण्डेय
 
}}
 
}}
 
'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स'''
 
'''द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स'''
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
  
 
'''3.
 
'''3.
 +
 +
 
हर सुबह
 
हर सुबह
  

15:55, 6 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स


3.


हर सुबह

दाल का अदहन चढ़ाकर

माँ चावल बीनने बैठ जाती


भूसी, किनकी, कंकड़ एक-एक कर ज़मीन पर गिरते


चमकती आँखों से भूख और गौरैया

आंगन में फुदकने लगते

दाल चुरती कि

हरदियाइन महकने लगता पूरा बरामदा


गौरैया और चकती आँखों से भूख

घर के कोने-कोने में

महक के साथ समा जाते


(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है