भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंधेरे का सफ़र / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमानाथ अवस्थी }} तुम्हारी चांदनी का क्या करूँ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी | |रचनाकार=रमानाथ अवस्थी | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGeet}} | |
− | तुम्हारी | + | <poem> |
− | + | तुम्हारी चाँदनी का क्या करूँ मैं | |
− | + | अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है | |
− | + | ||
किसी गुमनाम के दुख-सा | किसी गुमनाम के दुख-सा | ||
− | |||
अजाना है सफ़र मेरा | अजाना है सफ़र मेरा | ||
− | |||
पहाड़ी शाम-सा तुमने | पहाड़ी शाम-सा तुमने | ||
− | |||
मुझे वीरान में घेरा | मुझे वीरान में घेरा | ||
− | |||
तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ | तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ | ||
− | |||
समूचा ही शहर मेरे लिए है | समूचा ही शहर मेरे लिए है | ||
− | |||
थका बादल, किसी सौदामिनी | थका बादल, किसी सौदामिनी | ||
− | |||
के साथ सोता है | के साथ सोता है | ||
− | + | मगर इंसान थकने पर | |
− | मगर इंसान थकने पर बड़ा लाचार होता है | + | बड़ा लाचार होता है |
− | + | ||
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं | गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं | ||
− | |||
धरा की हर डगर मेरे लिए है | धरा की हर डगर मेरे लिए है | ||
− | |||
किसी चौरास्ते की रात-सा | किसी चौरास्ते की रात-सा | ||
− | |||
मैं सो नहीं पाता | मैं सो नहीं पाता | ||
− | |||
किसी के चाहने पर भी | किसी के चाहने पर भी | ||
− | |||
किसी का हो नहीं पाता | किसी का हो नहीं पाता | ||
− | + | मधुर है प्यार, लेकिन क्या करूँ मैं | |
− | मधुर है प्यार,लेकिन क्या करूँ मैं | + | |
− | + | ||
जमाने का ज़हर मेरे लिए है | जमाने का ज़हर मेरे लिए है | ||
− | + | नदी के साथ मैं, पहुँचा | |
− | नदी के साथ मैं,पहुँचा | + | |
− | + | ||
किसी सागर किनारे | किसी सागर किनारे | ||
− | + | गई ख़ुद डूब, मुझ को | |
− | गई ख़ुद डूब ,मुझ को | + | |
− | + | ||
छोड़ लहरों के सहारे | छोड़ लहरों के सहारे | ||
− | |||
निमंत्रण दे रही लहरें करूँ क्या | निमंत्रण दे रही लहरें करूँ क्या | ||
− | + | कहाँ कोई भँवर मेरे लिए है । | |
− | कहाँ कोई भँवर मेरे लिए | + | </poem> |
20:53, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
तुम्हारी चाँदनी का क्या करूँ मैं
अँधेरे का सफ़र मेरे लिए है
किसी गुमनाम के दुख-सा
अजाना है सफ़र मेरा
पहाड़ी शाम-सा तुमने
मुझे वीरान में घेरा
तुम्हारी सेज को ही क्यों सजाऊँ
समूचा ही शहर मेरे लिए है
थका बादल, किसी सौदामिनी
के साथ सोता है
मगर इंसान थकने पर
बड़ा लाचार होता है
गगन की दामिनी का क्या करूँ मैं
धरा की हर डगर मेरे लिए है
किसी चौरास्ते की रात-सा
मैं सो नहीं पाता
किसी के चाहने पर भी
किसी का हो नहीं पाता
मधुर है प्यार, लेकिन क्या करूँ मैं
जमाने का ज़हर मेरे लिए है
नदी के साथ मैं, पहुँचा
किसी सागर किनारे
गई ख़ुद डूब, मुझ को
छोड़ लहरों के सहारे
निमंत्रण दे रही लहरें करूँ क्या
कहाँ कोई भँवर मेरे लिए है ।