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"आँचल में उदासी / अनिता मंडा" के अवतरणों में अंतर
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+ | '''आँचल में उदासी''' | ||
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+ | दबा हृदय | ||
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+ | ठिठकी साँसें। | ||
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+ | खुली उदासी | ||
+ | साँझ के आँचल से | ||
+ | धूसर रंग। | ||
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+ | लिख दे चुप्पी | ||
+ | साँझ के होठों पर | ||
+ | चाँद का ताला | ||
+ | 24 | ||
+ | पंख समेटे | ||
+ | साँझ को घर चला | ||
+ | दिवस-पंछी। | ||
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+ | लिखी साँझ ने | ||
+ | उदास कहानियाँ | ||
+ | बिरही मन। | ||
+ | 26 | ||
+ | साँझ की आँखें | ||
+ | सम्मोहन से भरी | ||
+ | देतीं पुकार। | ||
+ | 27 | ||
+ | मंगल-गीत | ||
+ | खो गए जाने कहाँ | ||
+ | प्यारे वो मीत। | ||
+ | 28 | ||
+ | घड़े का पानी | ||
+ | गाँव का बरगद | ||
+ | यादों में नानी। | ||
+ | 29 | ||
+ | पीपल-छाँव | ||
+ | थे कई जोड़ी पाँव | ||
+ | स्मृति में गाँव। | ||
+ | 30 | ||
+ | सूनी चौपाल | ||
+ | खो गए शहरों में | ||
+ | बाल-गोपाल। | ||
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19:44, 1 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
16
खिड़की में था
रोशनी -भरा पर्दा
रात ने छीना।
17
ओढ़ के सोया
कोहरे की रजाई
बुझा-सा दिन।
18
सोई चाँदनी
रेत का बिछावन
शीतल थार
19
खिलें हैं फूल
दर्द की शाख़ पर
आँसू से सींचे
20
साँझ ने बाँधी
आँचल में उदासी
बिखरी चुप्पी।
21
दबा हृदय
चुप्पियों के बोझ से
ठिठकी साँसें।
22
खुली उदासी
साँझ के आँचल से
धूसर रंग।
23
लिख दे चुप्पी
साँझ के होठों पर
चाँद का ताला
24
पंख समेटे
साँझ को घर चला
दिवस-पंछी।
25
लिखी साँझ ने
उदास कहानियाँ
बिरही मन।
26
साँझ की आँखें
सम्मोहन से भरी
देतीं पुकार।
27
मंगल-गीत
खो गए जाने कहाँ
प्यारे वो मीत।
28
घड़े का पानी
गाँव का बरगद
यादों में नानी।
29
पीपल-छाँव
थे कई जोड़ी पाँव
स्मृति में गाँव।
30
सूनी चौपाल
खो गए शहरों में
बाल-गोपाल।