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"अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर
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अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता | अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता |
21:07, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अगर मैं धूप के सौदागरों से डर जाता
तो अपनी बर्फ़ उठाकर बता किधर जाता
पकड़ के छोड़ दिया मैंने एक जुगनू को
मैं उससे खेलता रहता तो वो बिखर जाता
मुझे यक़ीन था कि चोर लौट आएगा
फटी क़मीज़ मेरी ले वो किधर जाता
अगर मैं उसको बता कि मैं हूँ शीशे का
मेरा रक़ीब मुझे चूर-चूर कर जाता
तमाम रात भिखारी भटकता फिरता रहा
जो होता उसका कोई घर तो वो भी घर जाता
तमाम उम्र बनाई हैं तूने बन्दूकें
अगर खिलौने बनाता तो कुछ सँवर जाता.