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"खालें नहीं बची कहुए में/ रामकिशोर दाहिया" के अवतरणों में अंतर
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रहना कठिन | रहना कठिन | ||
हाल में अपने | हाल में अपने | ||
− | सारी राजनीति महुए में | + | सारी राजनीति महुए में |
− | + | ||
अर्जुन बनते | अर्जुन बनते | ||
निर्मम खींची | निर्मम खींची | ||
− | खालें नहीं बची कहुए१ में | + | खालें नहीं बची कहुए१ में. |
आगी पानी | आगी पानी | ||
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चीतल के पीछे | चीतल के पीछे | ||
शहर हाथ धो पड़े हुए हैं | शहर हाथ धो पड़े हुए हैं | ||
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छेड़े मुहिम | छेड़े मुहिम | ||
हवा के उलटे | हवा के उलटे | ||
− | हिम्मत नहीं किसी बबुए में | + | हिम्मत नहीं किसी बबुए में. |
जड़ को सपन | जड़ को सपन | ||
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उठा देने में | उठा देने में | ||
चालें चलते रहे घिनौनी | चालें चलते रहे घिनौनी | ||
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लगे उबारें | लगे उबारें | ||
पीर जतन से | पीर जतन से | ||
− | कीलें ठोंक रहे बिंगुए२ में | + | कीलें ठोंक रहे बिंगुए२ में. |
नई शाख | नई शाख | ||
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हिस्से जानें | हिस्से जानें | ||
कितने कई भाग में बांँटा | कितने कई भाग में बांँटा | ||
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कोई फर्क | कोई फर्क | ||
दिखा दे जानें ! | दिखा दे जानें ! | ||
− | शोषित नील पड़े चबुए३ में | + | शोषित नील पड़े चबुए३ में. |
टिप्पणी : | टिप्पणी : | ||
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२.बिंगुए-लकड़ी की मेखें। | २.बिंगुए-लकड़ी की मेखें। | ||
३.चबुए-गाल और जबड़े के मध्य का हिस्सा। | ३.चबुए-गाल और जबड़े के मध्य का हिस्सा। | ||
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-रामकिशोर दाहिया | -रामकिशोर दाहिया | ||
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12:55, 20 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
रहना कठिन
हाल में अपने
सारी राजनीति महुए में
अर्जुन बनते
निर्मम खींची
खालें नहीं बची कहुए१ में.
आगी पानी
अंँधड़ झेले
पांँव जमाकर खड़े हुए हैं
जंगल में
चीतल के पीछे
शहर हाथ धो पड़े हुए हैं
छेड़े मुहिम
हवा के उलटे
हिम्मत नहीं किसी बबुए में.
जड़ को सपन
दिखाकर साधे
मतलब की है आंँख मिचौनी
परती भूमि
उठा देने में
चालें चलते रहे घिनौनी
लगे उबारें
पीर जतन से
कीलें ठोंक रहे बिंगुए२ में.
नई शाख
लाने का चक्कर
टहनी सहित तने को काटा
एक पेड़ के
हिस्से जानें
कितने कई भाग में बांँटा
कोई फर्क
दिखा दे जानें !
शोषित नील पड़े चबुए३ में.
टिप्पणी :
१.कहुए-अर्जुन के पेड़।
२.बिंगुए-लकड़ी की मेखें।
३.चबुए-गाल और जबड़े के मध्य का हिस्सा।
-रामकिशोर दाहिया