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"हाइकु / रमेश गौतम / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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धुले नभ में
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बच्चों के मन- जैसा
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बाळूमन जनु च
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सौन्दर्य का उत्सव
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सरोवर में
  
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सुंदरता कु त्यार
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इन ताल माँ
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नूपुर ध्वनि
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धूप के पाँव पड़े
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देहरी पर
  
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घुँघुरु बाजी
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घामा खुट्टा पड़िन
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देळी परैंईँ
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फूलों से सीखो
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सुगन्ध कहना या
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मौन रहना
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फुल्लु माँ सिखा
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खुसबो बुन्न य त
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बौग ई मन्न
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नैन रोते हैं
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अश्रु  के पन्नों पर
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शब्द बोते हैं
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आँखा रूँदिन
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आँसु क पन्नों परैं
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सबद बूँदा
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जोगिया तन
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कर रहा आज भी
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सिया हरण
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जोगी सरैल
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कन्नू आज बि बल
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सिया हरण
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कृतार्थ हुआ
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मेरे गूँगेपन को
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मिली बाँसुरी
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धन्य ह्वे गयों
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मेरा गूँगा पन तैं
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मिलि बँसुळीं
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पढ़ता रहा
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पहाड़ नदी वन
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बंजारा मन
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पढ़णु राई
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पाड़ गंगाजी बौंण
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बोनसाई रिश्ते
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घरों में रोपे
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मुबैल न ई
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बोन्साई तरौं रिस्ता
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घरू माँ रोप्या
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क्षमा करना !
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बड़े कृतघ्न हम
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पीपल-पिता
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माफ करि दे!
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हम भौत निर्गुणी
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पिफळ बुबा
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कविता भी है
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माँ -सी ममतामयी
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पोंछती आँसू
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ब्वे तरौं ममत्याळीं
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पुंजदी आँसु
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गौरैया माँगें
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नीड़ भर जगह
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बस हमसे
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घिंडुड़ी माँगू
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घौर जन्नी इ जगा
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दा हम मुन
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14:20, 3 मई 2021 के समय का अवतरण

1
धुले नभ में
बच्चों के मन- जैसा
इन्द्र धनुष

ध्वयाँ-आगास
बाळूमन जनु च
इंद्रधनुस
2
कमलदल
सौन्दर्य का उत्सव
सरोवर में

कौंळदल च
सुंदरता कु त्यार
इन ताल माँ
3
नूपुर ध्वनि
धूप के पाँव पड़े
देहरी पर

घुँघुरु बाजी
घामा खुट्टा पड़िन
देळी परैंईँ
 4
फूलों से सीखो
सुगन्ध कहना या
 मौन रहना

फुल्लु माँ सिखा
खुसबो बुन्न य त
बौग ई मन्न
5
नैन रोते हैं
अश्रु के पन्नों पर
शब्द बोते हैं

आँखा रूँदिन
आँसु क पन्नों परैं
सबद बूँदा
6
जोगिया तन
कर रहा आज भी
सिया हरण

जोगी सरैल
कन्नू आज बि बल
सिया हरण
7
कृतार्थ हुआ
मेरे गूँगेपन को
मिली बाँसुरी

धन्य ह्वे गयों
मेरा गूँगा पन तैं
मिलि बँसुळीं
8
पढ़ता रहा
पहाड़ नदी वन
बंजारा मन

पढ़णु राई
पाड़ गंगाजी बौंण
लुंडेरु मन
9
मोबाइल ने
बोनसाई रिश्ते
घरों में रोपे

मुबैल न ई
बोन्साई तरौं रिस्ता
घरू माँ रोप्या
10
क्षमा करना !
बड़े कृतघ्न हम
पीपल-पिता

माफ करि दे!
हम भौत निर्गुणी
पिफळ बुबा
11
कविता भी है
माँ -सी ममतामयी
पोंछती आँसू

कविता बि च
ब्वे तरौं ममत्याळीं
पुंजदी आँसु
12
गौरैया माँगें
नीड़ भर जगह
बस हमसे

घिंडुड़ी माँगू
घौर जन्नी इ जगा
दा हम मुन
-0-