"हाइकु / रमेश गौतम / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | बच्चों के मन- जैसा | ||
+ | इन्द्र धनुष | ||
+ | ध्वयाँ-आगास | ||
+ | बाळूमन जनु च | ||
+ | इंद्रधनुस | ||
+ | 2 | ||
+ | कमलदल | ||
+ | सौन्दर्य का उत्सव | ||
+ | सरोवर में | ||
+ | कौंळदल च | ||
+ | सुंदरता कु त्यार | ||
+ | इन ताल माँ | ||
+ | 3 | ||
+ | नूपुर ध्वनि | ||
+ | धूप के पाँव पड़े | ||
+ | देहरी पर | ||
+ | घुँघुरु बाजी | ||
+ | घामा खुट्टा पड़िन | ||
+ | देळी परैंईँ | ||
+ | 4 | ||
+ | फूलों से सीखो | ||
+ | सुगन्ध कहना या | ||
+ | मौन रहना | ||
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+ | फुल्लु माँ सिखा | ||
+ | खुसबो बुन्न य त | ||
+ | बौग ई मन्न | ||
+ | 5 | ||
+ | नैन रोते हैं | ||
+ | अश्रु के पन्नों पर | ||
+ | शब्द बोते हैं | ||
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+ | आँखा रूँदिन | ||
+ | आँसु क पन्नों परैं | ||
+ | सबद बूँदा | ||
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+ | जोगिया तन | ||
+ | कर रहा आज भी | ||
+ | सिया हरण | ||
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+ | जोगी सरैल | ||
+ | कन्नू आज बि बल | ||
+ | सिया हरण | ||
+ | 7 | ||
+ | कृतार्थ हुआ | ||
+ | मेरे गूँगेपन को | ||
+ | मिली बाँसुरी | ||
+ | |||
+ | धन्य ह्वे गयों | ||
+ | मेरा गूँगा पन तैं | ||
+ | मिलि बँसुळीं | ||
+ | 8 | ||
+ | पढ़ता रहा | ||
+ | पहाड़ नदी वन | ||
+ | बंजारा मन | ||
+ | |||
+ | पढ़णु राई | ||
+ | पाड़ गंगाजी बौंण | ||
+ | लुंडेरु मन | ||
+ | 9 | ||
+ | मोबाइल ने | ||
+ | बोनसाई रिश्ते | ||
+ | घरों में रोपे | ||
+ | |||
+ | मुबैल न ई | ||
+ | बोन्साई तरौं रिस्ता | ||
+ | घरू माँ रोप्या | ||
+ | 10 | ||
+ | क्षमा करना ! | ||
+ | बड़े कृतघ्न हम | ||
+ | पीपल-पिता | ||
+ | |||
+ | माफ करि दे! | ||
+ | हम भौत निर्गुणी | ||
+ | पिफळ बुबा | ||
+ | 11 | ||
+ | कविता भी है | ||
+ | माँ -सी ममतामयी | ||
+ | पोंछती आँसू | ||
+ | |||
+ | कविता बि च | ||
+ | ब्वे तरौं ममत्याळीं | ||
+ | पुंजदी आँसु | ||
+ | 12 | ||
+ | गौरैया माँगें | ||
+ | नीड़ भर जगह | ||
+ | बस हमसे | ||
+ | |||
+ | घिंडुड़ी माँगू | ||
+ | घौर जन्नी इ जगा | ||
+ | दा हम मुन | ||
+ | -0- | ||
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14:20, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
धुले नभ में
बच्चों के मन- जैसा
इन्द्र धनुष
ध्वयाँ-आगास
बाळूमन जनु च
इंद्रधनुस
2
कमलदल
सौन्दर्य का उत्सव
सरोवर में
कौंळदल च
सुंदरता कु त्यार
इन ताल माँ
3
नूपुर ध्वनि
धूप के पाँव पड़े
देहरी पर
घुँघुरु बाजी
घामा खुट्टा पड़िन
देळी परैंईँ
4
फूलों से सीखो
सुगन्ध कहना या
मौन रहना
फुल्लु माँ सिखा
खुसबो बुन्न य त
बौग ई मन्न
5
नैन रोते हैं
अश्रु के पन्नों पर
शब्द बोते हैं
आँखा रूँदिन
आँसु क पन्नों परैं
सबद बूँदा
6
जोगिया तन
कर रहा आज भी
सिया हरण
जोगी सरैल
कन्नू आज बि बल
सिया हरण
7
कृतार्थ हुआ
मेरे गूँगेपन को
मिली बाँसुरी
धन्य ह्वे गयों
मेरा गूँगा पन तैं
मिलि बँसुळीं
8
पढ़ता रहा
पहाड़ नदी वन
बंजारा मन
पढ़णु राई
पाड़ गंगाजी बौंण
लुंडेरु मन
9
मोबाइल ने
बोनसाई रिश्ते
घरों में रोपे
मुबैल न ई
बोन्साई तरौं रिस्ता
घरू माँ रोप्या
10
क्षमा करना !
बड़े कृतघ्न हम
पीपल-पिता
माफ करि दे!
हम भौत निर्गुणी
पिफळ बुबा
11
कविता भी है
माँ -सी ममतामयी
पोंछती आँसू
कविता बि च
ब्वे तरौं ममत्याळीं
पुंजदी आँसु
12
गौरैया माँगें
नीड़ भर जगह
बस हमसे
घिंडुड़ी माँगू
घौर जन्नी इ जगा
दा हम मुन
-0-