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"एक दहक अंगार/ रामकिशोर दाहिया" के अवतरणों में अंतर
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+ | चले गये तुम छोड़-छाड़ के | ||
+ | आदत नहीं | ||
+ | शलाकाओं की | ||
+ | बाहर निकले तोड़-ताड़ के | ||
+ | बन्द गुफा के | ||
+ | भीतर तुमने | ||
+ | वर्षों रात गुजारे दिन थे | ||
+ | लगें खिलौना | ||
+ | प्राणहीन हम | ||
+ | नज़र तुम्हारी ताकत बिन थे | ||
+ | बीज पेड़ के | ||
+ | हम अँकुराये | ||
+ | निकले पत्थर फोड़-फाड़ के | ||
+ | कोई चीज | ||
+ | आग की रोड़ा | ||
+ | कैसे कहाँ भला कब बनतीं ? | ||
+ | एक दहक | ||
+ | आकर दिलाये | ||
+ | लपटें उसकी छतरी तनतीं | ||
+ | जिसने रोका | ||
+ | लिंगी मारी | ||
+ | रखा उसी को मोड़-माड़ के | ||
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+ | तीरंदाजी | ||
+ | नहीं काम की | ||
+ | बेतुक हुआ निशाना साधा | ||
+ | औरों को | ||
+ | पटखनी लगाने | ||
+ | करते रहे स्वयं बल आधा | ||
+ | अपने कद को | ||
+ | दिये ऊँचाई | ||
+ | सारी टूटन जोड़-जाड़ के | ||
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-रामकिशोर दाहिया | -रामकिशोर दाहिया | ||
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11:09, 1 जून 2021 के समय का अवतरण
हमें फ्रेम के
अन्दर मढ़कर
चले गये तुम छोड़-छाड़ के
आदत नहीं
शलाकाओं की
बाहर निकले तोड़-ताड़ के
बन्द गुफा के
भीतर तुमने
वर्षों रात गुजारे दिन थे
लगें खिलौना
प्राणहीन हम
नज़र तुम्हारी ताकत बिन थे
बीज पेड़ के
हम अँकुराये
निकले पत्थर फोड़-फाड़ के
कोई चीज
आग की रोड़ा
कैसे कहाँ भला कब बनतीं ?
एक दहक
आकर दिलाये
लपटें उसकी छतरी तनतीं
जिसने रोका
लिंगी मारी
रखा उसी को मोड़-माड़ के
तीरंदाजी
नहीं काम की
बेतुक हुआ निशाना साधा
औरों को
पटखनी लगाने
करते रहे स्वयं बल आधा
अपने कद को
दिये ऊँचाई
सारी टूटन जोड़-जाड़ के
-रामकिशोर दाहिया