भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छककरके पिया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
खिल उठेंगे सारे | खिल उठेंगे सारे | ||
चाँद और सितारे | चाँद और सितारे | ||
− | '''( | + | 162 |
− | + | उर -आँगन | |
− | <poem> | + | हो उठा रससिक्त |
+ | सुरभित दिशाएँ | ||
+ | शीतल इन्दु | ||
+ | नभ में बिखेरता | ||
+ | मधुमय चन्द्रिका। | ||
+ | 163 | ||
+ | तुझमें प्राण | ||
+ | बसे है मेरे ऐसे | ||
+ | जैसे वंशी में तान, | ||
+ | कंठ में गान | ||
+ | आँखों में आँसू छिपे | ||
+ | ऐसे तुम मन में। | ||
+ | -0-'''(27-02-2023)''' | ||
+ | </poem> |
12:07, 8 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
158
अमृत-सिन्धु
उमड़ा हृदय में
छककरके पिया
जीवन जिया
शब्द हैं ब्रह्म रूप
तुम सर्दी की धूप।
159
चाहूँ न कभी
धन ,यश , सम्मान
चाहूँ तेरी मुस्कान,
मिटती व्यथा
सुनकर तुम्हारी
मधुर -प्रेमकथा।
160
छा ही जाएगा
जग में उजियारा
ज्योति, प्रेम तुम्हारा,
पलकें गीलीं
चूम व्यथा जो पी ली
रोम- रोम हर्षित।
161
तेरी उदासी
चुभती शूल जैसी
मुझको है रुलाती,
हँस दोगी तो
खिल उठेंगे सारे
चाँद और सितारे
162
उर -आँगन
हो उठा रससिक्त
सुरभित दिशाएँ
शीतल इन्दु
नभ में बिखेरता
मधुमय चन्द्रिका।
163
तुझमें प्राण
बसे है मेरे ऐसे
जैसे वंशी में तान,
कंठ में गान
आँखों में आँसू छिपे
ऐसे तुम मन में।
-0-(27-02-2023)