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कविता की ओर / वेणु गोपाल
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15:20, 5 नवम्बर 2008
रात दोपहर में विलय हो रही है
ज़िस्म
जिस्म
हमारे भीतर
सुबह की लाली हो रहे हैं।
अनिल जनविजय
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