भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदलाव / शंख घोष / जयश्री पुरवार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=जयश्री पुरवार |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
अब और हम लोगों को नहीं है कोई परेशानी
 +
क्योंकि हमने बदल लिया है दल
 +
बन गए हैं ‘वे लोग’।
  
 +
उस दिन रात भर चला था वह दल-बदल का उत्सव
 +
बदला जा रहा था झण्डा
 +
स्तब्ध उल्लास से भर उठा था आँगन
 +
और गान और हुल्लड़ और विजयध्वनि सुनाई दे रही थी
 +
और भोज की सुवास।
  
 +
और कोई अशान्ति नहीं थी, सिर्फ़
 +
आग की लौ के पास
 +
तब भी तुम्हारे चेहरे पर विगत जन्म की छाया को झूलते देखकर
 +
तुम्हें मौन देखकर
 +
हमने आगे बढ़कर कहा था  — अब डर किस बात का है,
 +
 +
यह तो अच्छा हुआ
 +
अब हम हो गए ‘वे लोग’
 +
हम लोगों को और कोई परेशानी नहीं है
 +
देखो, कैसे अच्छी तरह से बीत रही है
 +
हमारी कीड़े-मकोड़ों जैसी ज़िन्दगी ।
  
 
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार'''
 
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार'''
 
</poem>
 
</poem>

09:46, 4 जुलाई 2022 के समय का अवतरण

अब और हम लोगों को नहीं है कोई परेशानी
क्योंकि हमने बदल लिया है दल
बन गए हैं ‘वे लोग’।

उस दिन रात भर चला था वह दल-बदल का उत्सव
बदला जा रहा था झण्डा
स्तब्ध उल्लास से भर उठा था आँगन
और गान और हुल्लड़ और विजयध्वनि सुनाई दे रही थी
और भोज की सुवास।

और कोई अशान्ति नहीं थी, सिर्फ़
आग की लौ के पास
तब भी तुम्हारे चेहरे पर विगत जन्म की छाया को झूलते देखकर
तुम्हें मौन देखकर
हमने आगे बढ़कर कहा था — अब डर किस बात का है,

यह तो अच्छा हुआ
अब हम हो गए ‘वे लोग’
हम लोगों को और कोई परेशानी नहीं है
देखो, कैसे अच्छी तरह से बीत रही है
हमारी कीड़े-मकोड़ों जैसी ज़िन्दगी ।

मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार