"अलविदा / अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ | |रचनाकार=अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ | ||
|अनुवादक=वरयाम सिंह | |अनुवादक=वरयाम सिंह | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=शब्द रुग्ण आत्मा के / अपअललोन ग्रिगोरिइफ़ / वरयाम सिंह |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
दिल टूट चुका है बहुत भीतर से ... | दिल टूट चुका है बहुत भीतर से ... | ||
तैरता जा रहा हूँ मैं दूर, बहुत दूर | तैरता जा रहा हूँ मैं दूर, बहुत दूर | ||
− | अनदेखे शब्दों के पीछे, आज़ादी के शब्दों के पीछे । | + | अनदेखे शब्दों के पीछे, आज़ादी के शब्दों के पीछे । |
− | + | ||
− | + | ||
जून 1858, फ़्लोरेंस | जून 1858, फ़्लोरेंस |
18:52, 6 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
अलविदा, अलविदा, तुमसे भी, ओ मेरी सुबह,
अलविदा, ओ मेरी मातृभूमि के प्रिय पुष्प,
तुम्ही हो, प्यार रहा मीठा और कड़वा जिससे,
प्यार किया जिसे शेष बची ताक़त से ।
अलविदा, कुछ बुरा याद नहीं करना तुम,
याद न करना न पागल सपनों को, न कहानी-क़िस्सों को,
न इन आँसुओं को जिन्हें कभी-कभी
बहाना पड़ता रहा आँखों को ॥
अलविदा, देश से दूर जैसे निष्कासन में,
मीठे ज़हर की तरह ग्रहण करूँगा
विदाई के अन्तिम शब्दों को
उदास, देर तक निहारती आँखों को ।
अलविदा, अलविदा, स्याह पड़ गया है पानी,
दिल टूट चुका है बहुत भीतर से ...
तैरता जा रहा हूँ मैं दूर, बहुत दूर
अनदेखे शब्दों के पीछे, आज़ादी के शब्दों के पीछे ।
जून 1858, फ़्लोरेंस
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
और लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Аполло́н Григо́рьев
Прощай и ты, последняя зорька
Прощай и ты, последняя зорька,
Цветок моей родины милой,
Кого так сладко, кого так горько
Любил я последнею силой…
Прости-прощай ты и лихом не вспомни
Ни снов тех ужасных, ни сказок,
Ни этих слез, что было дано мне
Порой исторгнуть из глазок.
Прости-прощай ты – в краю изгнанья
Я буду, как сладким ядом,
Питаться словом последним прощанья,
Унылым и долгим взглядом.
Прости-прощай ты, стемнели воды…
Сердце разбито глубоко…
За странным словом, за сном свободы
Плыву я далеко, далеко…
(Июнь 1858)
(Флоренция)