"निर्वस्त्र यात्री / लिअनीद मर्तीनफ़" के अवतरणों में अंतर
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किसी ने नहीं देखी आज तक । | किसी ने नहीं देखी आज तक । | ||
कौन है वह ? युद्ध के वर्षों की निर्मम धरोहर | कौन है वह ? युद्ध के वर्षों की निर्मम धरोहर | ||
जब शत्रु सैनिक सर्दियों में क़ैदियों के उतरवा देते थे कपड़े | जब शत्रु सैनिक सर्दियों में क़ैदियों के उतरवा देते थे कपड़े | ||
− | और कहते थे | + | और कहते थे — 'भाग जा !' |
सम्भव है यह कोई पागल स्वाभिमानी हो | सम्भव है यह कोई पागल स्वाभिमानी हो | ||
प्रकृति के साथ छेड़ बैठा हो युद्ध | प्रकृति के साथ छेड़ बैठा हो युद्ध |
21:44, 14 अगस्त 2022 के समय का अवतरण
मुझे मालूम है यह आकाश
फिर से प्राप्त कर लेगा नीलापन
बैठ जाएगा यह ठण्डा झाग
पूँछ उठाता उड़ जाएगा यह धुआँ ।
सब बस्तियाँ, सब सड़कें
डूब चुकी थीं बर्फ़ के भीतर
तभी पैदा हुई अफ़वाहें
निर्वस्त्र टहलते उस प्रेत के बारे में ।
प्रकट हुआ वह सबसे पहले
प्राचीन भवनों के अवशेषों में
फिर निर्दोष हृदयों में भय फैलाने के लिए
तेज़ किए उसने खाली जगहों में अपने क़दम ।
जिनके भी सामने वह प्रकट हुआ
सबने क़सम खाते हुए कहा —
कोई उद्देश्य नहीं था
नंगे सिर निर्वस्त्र टहलते उस प्रेत का ।
हमारी भी भेंट हुई है उससे ।
सहमत होंगे आप भी
उसके जैसी भयावह नग्नता
किसी ने नहीं देखी आज तक ।
कौन है वह ? युद्ध के वर्षों की निर्मम धरोहर
जब शत्रु सैनिक सर्दियों में क़ैदियों के उतरवा देते थे कपड़े
और कहते थे — 'भाग जा !'
सम्भव है यह कोई पागल स्वाभिमानी हो
प्रकृति के साथ छेड़ बैठा हो युद्ध
भीषण शीत और झुलसती गरमी की
स्वीकार न हो उसे कोई दासता ?
व्यर्थ है अनुमान लगाना ।
और सख़्त हो गए हैं नीले तुषारनद ।
शिशिर की हताश लहरें
पैदा कर रही हैं मृगजाल तरह-तरह के ।
पर इस श्वेत उबाल में
झुलस गया मैं इस बर्फ़ीली चमक में ।
अपने शरीर और आत्मा से
अनुभव कर रहा हूँ
कि जीवित है वह शाश्वत यात्री-अपोलो !
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह