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− | : पार्श्व | + | : पार्श्व गिरि का नम्र, चीड़ों में |
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बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा। | बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा। | ||
विहग-शिशु मौन नीड़ों में। | विहग-शिशु मौन नीड़ों में। | ||
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+ | तमक कर दामिनी बोली- | ||
+ | 'अरे यायावर! रहेगा याद?' | ||
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+ | '''माफ्लङ् (शिलङ्), 22 सितम्बर, 1947''' | ||
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11:00, 13 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
पार्श्व गिरि का नम्र, चीड़ों में
डगर चढ़ती उमंगों-सी।
बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा।
विहग-शिशु मौन नीड़ों में।
मैं ने आँख भर देखा।
दिया मन को दिलासा-पुन: आऊँगा।
(भले ही बरस-दिन-अनगिन युगों के बाद!)
क्षितिज ने पलक-सी खोली,
तमक कर दामिनी बोली-
'अरे यायावर! रहेगा याद?'
माफ्लङ् (शिलङ्), 22 सितम्बर, 1947