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"तुम एक अजाना सपना / अजय कुमार" के अवतरणों में अंतर

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ज्यों फिर से नया नाता
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मैं कैसे न रसमसाता
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आवारा बादल को जैसे
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एक बिजली ने था छुआ
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रखी बाँसुरी को जैसे
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पागल हवा ने फूँक दिया
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तितली के पंख- सा
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एक खत था फड़फड़ाता
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दिल कैसे न पढ़ पाता
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इंद्रधनुषी दिन हुए
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शामें अब मनरंगी
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बहती नदी- सा
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वक्त हुआ यह
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मदहोश और अतरंगी
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केसर छुटे निमंत्रण को
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कोई कैसे फिर ठुकराता
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मेहरबान हो जब
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मौसम इतना
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मैं क्यूँ नहीं इतराता
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तुम एक अजाना सपना.....
  
 
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02:40, 17 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण


तुम एक
अजाना सपना
जैसे एक रंगीन
खुल गया छाता
मैं कैसे बच पाता

परछाइयाँ पुरानी
सब टूटी
और बिखर गईं
नील झील
मन दर्पण में
छवि बनी
और सँवर गई
 
बूँदों से धरती का
ज्यों फिर से नया नाता
मैं कैसे न रसमसाता

आवारा बादल को जैसे
एक बिजली ने था छुआ
रखी बाँसुरी को जैसे
पागल हवा ने फूँक दिया

तितली के पंख- सा
एक खत था फड़फड़ाता
दिल कैसे न पढ़ पाता

इंद्रधनुषी दिन हुए
शामें अब मनरंगी
बहती नदी- सा
वक्त हुआ यह
मदहोश और अतरंगी

केसर छुटे निमंत्रण को
कोई कैसे फिर ठुकराता
मेहरबान हो जब
मौसम इतना
मैं क्यूँ नहीं इतराता

तुम एक अजाना सपना.....