"दीवारें / लिली मित्रा" के अवतरणों में अंतर
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+ | मौजूदगी इनकी | ||
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+ | 'धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं' | ||
+ | तो वहीं | ||
+ | चार दीवारों और उन पर | ||
+ | टिकी छत कमाने के लिए | ||
+ | लोग खून -पसीने की | ||
+ | फसल बोते हैं | ||
+ | नफा भी कमाती हैं | ||
+ | नुकसान भी दिखाती हैं | ||
+ | दिली नफ़रतों की नींव पर | ||
+ | मज़बूती से खड़ी होती हैं | ||
+ | अपने जिस्म पर प्यार की | ||
+ | बानगी भी लिए होती हैं | ||
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+ | ना जाने कितने रंगों में | ||
+ | रँगी होती हैं | ||
+ | यूँ तो महज़ ईंट-गारे | ||
+ | की बनी होती हैं | ||
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+ | इंसानी आबरू को | ||
+ | पनाह भी यहीं मिलती है | ||
+ | तो | ||
+ | इनकी आड़ में बेरहमी से, | ||
+ | लुटती भी यहीं दिखती हैं | ||
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+ | कभी ये सीली | ||
+ | तो कभी | ||
+ | सूनी दिखती हैं | ||
+ | ढलती उम्र के बिस्तर पर | ||
+ | यादों के एलबम- सी | ||
+ | दिखती हैं | ||
+ | लाचार शरीर की गवाह | ||
+ | बनी | ||
+ | बड़ी बेचारगी से तकती हैं | ||
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+ | और भी बहुत कुछ है | ||
+ | मगर | ||
+ | इतना ही काफ़ी है | ||
+ | अभी और पढ़ लूँ मैं इनको | ||
+ | इनके कोनों में छिपा | ||
+ | बहुत कुछ बाकी है | ||
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05:06, 19 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
दीवारों का वजूद भी
अजीब होता है
होना भी ज़रूरी
और
ना होना भी अजीज़
होता है
मौजूदगी इनकी
डराती भी है
'धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं'
तो वहीं
चार दीवारों और उन पर
टिकी छत कमाने के लिए
लोग खून -पसीने की
फसल बोते हैं
नफा भी कमाती हैं
नुकसान भी दिखाती हैं
दिली नफ़रतों की नींव पर
मज़बूती से खड़ी होती हैं
अपने जिस्म पर प्यार की
बानगी भी लिए होती हैं
ना जाने कितने रंगों में
रँगी होती हैं
यूँ तो महज़ ईंट-गारे
की बनी होती हैं
इंसानी आबरू को
पनाह भी यहीं मिलती है
तो
इनकी आड़ में बेरहमी से,
लुटती भी यहीं दिखती हैं
कभी ये सीली
तो कभी
सूनी दिखती हैं
ढलती उम्र के बिस्तर पर
यादों के एलबम- सी
दिखती हैं
लाचार शरीर की गवाह
बनी
बड़ी बेचारगी से तकती हैं
और भी बहुत कुछ है
मगर
इतना ही काफ़ी है
अभी और पढ़ लूँ मैं इनको
इनके कोनों में छिपा
बहुत कुछ बाकी है
-0-