भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छोकरागीरी / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
दिखा नहीं फिर | दिखा नहीं फिर | ||
+ | '''"एक मुक्का भी कभी खुली हुई हथेली और उंगलियाँ था"--''' येहदा अमिख़ाई की यह कविता-पंक्ति पढ़कर | ||
</poem> | </poem> |
20:03, 11 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
तेज़ मुक्के मारे धारासार इतने
अंधेरा था जहाँ गली में
वहीं गिर गया
मेरी हथेली पर
सब लाल लाल
लटके थे
ताम्बाई ताबीज़ गोधूलि के
--रोशनी
गली बाहर
चेहरा वह छिछड़ गया जो
दिखा नहीं फिर
"एक मुक्का भी कभी खुली हुई हथेली और उंगलियाँ था"-- येहदा अमिख़ाई की यह कविता-पंक्ति पढ़कर