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"रिश्ते रेतीले /रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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तुम गढ़ लो कोई
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  ऐसे भी जी लें।'''
  
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पुष्प बनो या
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हो जाओ पत्थर ;
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          सागर- टीले ।'''
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यदि मुकर गई
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नयनों की भाषा
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साथ क्या  देगी
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पंगु अभिलाषा;
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      '''बूँद-बूँद पीड़ा-
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      को पी लें ।'''
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-0--(12-6-1983-बेखटके बालाघाट-जन 86)
  
 
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08:08, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

बिसरा दो
रिश्ते रेतीले
मन के पाहुन को
क्या बहकाना,
तुम गढ़ लो कोई
सभ्य बहाना
   पल -दो पल
  ऐसे भी जी लें।

अनीति-नीति का
मिट रहा अन्तर
पुष्प बनो या
हो जाओ पत्थर ;
          अर्थहीन सब
          सागर- टीले ।

यदि मुकर गई
नयनों की भाषा
साथ क्या देगी
पंगु अभिलाषा;
       बूँद-बूँद पीड़ा-
       को पी लें ।
-0--(12-6-1983-बेखटके बालाघाट-जन 86)