भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फुलझड़ी / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' धरती के सुदूर देहरी पर रखा जलता हुआ दीया देखा प्रक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=अशोक शाह
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
  
 
धरती के सुदूर देहरी पर
 
धरती के सुदूर देहरी पर
पंक्ति 17: पंक्ति 22:
 
अवनि की आखिरी छोर पर खडे़  
 
अवनि की आखिरी छोर पर खडे़  
 
प्रतिक्षारत  
 
प्रतिक्षारत  
अपने मासूमों के लिए
+
अपने मासूमों के लिए  
 +
 
 +
-0-
 +
 
 +
</poem>

03:18, 21 जनवरी 2023 के समय का अवतरण


धरती के सुदूर देहरी पर
रखा जलता हुआ दीया
देखा प्रकम्पित प्रकाष में
अनापेक्षित
चींटियाँ लौट रही थीं घर
पंक्तिबद्ध
मानो पृथ्वी के मजदूर
लपक रहे हो घर
भरते जल्दी-जल्दी डेग
 
नहीं जानता
इस दीपावली के शुभ मुहूर्त में
पहँुच पाँएगें घर
लिए हाथों में एक फुलझड़ी
अवनि की आखिरी छोर पर खडे़
प्रतिक्षारत
अपने मासूमों के लिए

-0-