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"रिश्ते! / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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हाँ! भर देना
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पैसों से ज्यादा
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प्यारी नहीं किसी को
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अब मर्यादा!
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इन रिश्तों में
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मिला दुख- दर्द ही
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हमें किश्तों में!
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कम, अधिक?
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प्रेम हो गया अब
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औपचारिक!
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प्यार, जज़्बात
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गुजरे जमाने की
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हो गई बात!
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बढ़ी उदासी!
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प्यार के फूल सारे
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हो गए बासी।
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करें वो जो भी
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सात खून माफ हैं
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रिश्तों के तो भी!
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बस हो चुका
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भरोसा ही रिश्तों से
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जब खो चुका!
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छिड़ी है जंग
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पैसों ने लगाई है
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रिश्तों में जंग!
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बढ़े फासले
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कौन सी राह पर
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ये रिश्ते चले?
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हुआ बखेड़ा
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रिश्तों की सीवन को
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क्या है उधेड़ा?
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अपनी गर्ज!
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हाँ! हरेक को अब
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यही है मर्ज।
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जमाना कैसा!
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सबके लिए 'सब'
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हो गया पैसा।
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खरीदो प्यार
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या बेचो, घर- घर
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लगा बाजार!
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रिश्तों का रूप
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होता चला जा रहा
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अब विद्रूप!
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क्या खूब रीति
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रिश्तों ने घर में की
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फूट की नीति!
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एक नासूर!
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रिश्ते पीर, टीस से
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हैं भरपूर!!
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आग लगाते
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और प्रेम का झण्डा
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रिश्ते उठाते!
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जन्म से जुड़े
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जीवन भर कुढ़े
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हमसे रिश्ते!
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आदत बुरी
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रिश्ते घोंप देते हैं
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पीठ में छुरी!
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रिश्ते हैं साँप
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कोई नाम भी ले तो
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जाती हूँ काँप!
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रिश्तों की चोटी!
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चढ़ो! देखो! दिखेगी
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भावना खोटी!!
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रिश्ते केवल
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पिलाते हलाहल
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क्यों पल- पल?
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ये सारे रिश्ते
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'चाल' की चक्की हुए
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हम पिसते!
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रिश्तों की मूर्ति
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गौर से देखो तो है-
 +
स्वार्थ की पूर्ति!
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कहाँ है प्रीति?
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केवल कूटनीति
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भरी रिश्तों में!
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ये जो उत्पात!
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इसमें पूरा हाथ
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रिश्तों का ही है!
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27
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बस लूट ही
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सब रिश्तों का केंद्र
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बनें राजेंद्र!
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28
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पाँव तो छूते
 +
प्रेम- भाव से रिश्ते
 +
पर अछूते!
 +
29
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दुख के पार
 +
ले लेते अवतार
 +
फिर से रिश्ते!
 +
30
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जिसको माना
 +
वो निठुुर अहेरी
 +
डालता दाना!
 +
31
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रहे सदा से
 +
खून के बस प्यासे
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खून के रिश्ते!
 +
32
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खून के नाते
 +
खूब रीति निभाते
 +
खून रुलाते!
 +
33
 +
बेच दी लाज
 +
पैसों के मोहताज
 +
सम्बन्ध आज!
 +
34
 +
जरा लो भाँप
 +
जहरीले रिश्ते हैं-
 +
दोमुँहे साँप।
 +
35
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न आए बाज
 +
खून के रिश्ते की वो
 +
लुटाते लाज!
 +
36
 +
अपनों ने भी
 +
कहीं का नहीं छोड़ा
 +
विश्वास तोड़ा!
 +
37
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किससे भला
 +
आशा, अपनों ने ही
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घोंटा है गला!
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वाह रे प्यार?
 +
पीठ- पीछे करते
 +
अपने वार!
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 +
कैसा लगाव!
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सबके जी में भरा
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वैर का भाव!!
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40
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बड़ा लाड़ है!
 +
ना! प्यार की आड़ में
 +
खिलवाड़ है।
 +
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10:50, 7 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण

1
पैसों से ज्यादा
प्यारी नहीं किसी को
अब मर्यादा!
2
इन रिश्तों में
मिला दुख- दर्द ही
हमें किश्तों में!
3
कम, अधिक?
प्रेम हो गया अब
औपचारिक!
4
प्यार, जज़्बात
गुजरे जमाने की
हो गई बात!
5
बढ़ी उदासी!
प्यार के फूल सारे
हो गए बासी।
6
करें वो जो भी
सात खून माफ हैं
रिश्तों के तो भी!
7
बस हो चुका
भरोसा ही रिश्तों से
जब खो चुका!
8
छिड़ी है जंग
पैसों ने लगाई है
रिश्तों में जंग!
9
बढ़े फासले
कौन सी राह पर
ये रिश्ते चले?
10
हुआ बखेड़ा
रिश्तों की सीवन को
क्या है उधेड़ा?
11
अपनी गर्ज!
हाँ! हरेक को अब
यही है मर्ज।
12
जमाना कैसा!
सबके लिए 'सब'
हो गया पैसा।
13
खरीदो प्यार
या बेचो, घर- घर
लगा बाजार!
14
रिश्तों का रूप
होता चला जा रहा
अब विद्रूप!
15
क्या खूब रीति
रिश्तों ने घर में की
फूट की नीति!
16
एक नासूर!
रिश्ते पीर, टीस से
हैं भरपूर!!
17
आग लगाते
और प्रेम का झण्डा
रिश्ते उठाते!
18
जन्म से जुड़े
जीवन भर कुढ़े
हमसे रिश्ते!
19
आदत बुरी
रिश्ते घोंप देते हैं
पीठ में छुरी!
20
रिश्ते हैं साँप
कोई नाम भी ले तो
जाती हूँ काँप!
21
रिश्तों की चोटी!
चढ़ो! देखो! दिखेगी
भावना खोटी!!
22
रिश्ते केवल
पिलाते हलाहल
क्यों पल- पल?
23
ये सारे रिश्ते
'चाल' की चक्की हुए
हम पिसते!
24
रिश्तों की मूर्ति
गौर से देखो तो है-
स्वार्थ की पूर्ति!
25
कहाँ है प्रीति?
केवल कूटनीति
भरी रिश्तों में!
26
ये जो उत्पात!
इसमें पूरा हाथ
रिश्तों का ही है!
27
बस लूट ही
सब रिश्तों का केंद्र
बनें राजेंद्र!
28
पाँव तो छूते
प्रेम- भाव से रिश्ते
पर अछूते!
29
दुख के पार
ले लेते अवतार
फिर से रिश्ते!
30
जिसको माना
वो निठुुर अहेरी
डालता दाना!
31
रहे सदा से
खून के बस प्यासे
खून के रिश्ते!
32
खून के नाते
खूब रीति निभाते
खून रुलाते!
33
बेच दी लाज
पैसों के मोहताज
सम्बन्ध आज!
34
जरा लो भाँप
जहरीले रिश्ते हैं-
दोमुँहे साँप।
35
न आए बाज
खून के रिश्ते की वो
लुटाते लाज!
36
अपनों ने भी
कहीं का नहीं छोड़ा
विश्वास तोड़ा!
37
किससे भला
आशा, अपनों ने ही
घोंटा है गला!
38
वाह रे प्यार?
पीठ- पीछे करते
अपने वार!
39
कैसा लगाव!
सबके जी में भरा
वैर का भाव!!
40
बड़ा लाड़ है!
ना! प्यार की आड़ में
खिलवाड़ है।
-0-