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"इनिसफ़िरी का द्वीप / हरिवंश राय बच्चन / विलियम बटलर येट्स" के अवतरणों में अंतर

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मिट्टी-सरकण्डों की छोटी कुटिया एक बनाऊँगा;
 
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तरु पर एक शहद का छत्ता, मटर सतर नौ माटी में –
 
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यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर गुंजित घाटी में ।
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यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर-गुंजित घाटी में ।
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वहीं मिलेगी शान्ति टपकती मन्द-मधुर बौछारों से,
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प्रात-उषा के अवगुण्ठन  से, झींगुर की झनकारों से;
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रात सितारों वाली होगी, स्वर्ण किरण वाली दोपहर,
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सन्ध्या का आँगन भर देंगे उड़ती चिड़ियों के स्वर-पर ।
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अभी उठूँगा औ’ जाऊँगा, क्योंकि सदा दिन हो या रात
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मुझे सुनाई देती रहती, लहरों से कूलों की बात;
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चलता रहूँ सड़क पर, चाहे खड़ा रहूँ मैं पटरी पर,
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उनका स्वर मुखरित होता है मेरे मानस के अन्दर ।
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अभी यहाँ से उठकर चलकर इनिसफ़िरी को जाऊँगा,
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यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर-गुंजित घाटी में ।
  
 
'''मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित'''
 
'''मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित'''
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           William Butler Yeats
 
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     The Lake Isle of Innisfree
 
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I will arise and go now, and go to Innisfree,
 
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While I stand on the roadway, or on the pavements grey,
 
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I hear it in the deep heart’s core.
 
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And a small cabin build there, of clay and wattles made;
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Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee,
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And live alone in the bee-loud glade.
 
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12:50, 26 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण

अभी यहाँ से उठकर चलकर इनिसफ़िरी को जाऊँगा,
मिट्टी-सरकण्डों की छोटी कुटिया एक बनाऊँगा;
तरु पर एक शहद का छत्ता, मटर सतर नौ माटी में –
यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर-गुंजित घाटी में ।

वहीं मिलेगी शान्ति टपकती मन्द-मधुर बौछारों से,
प्रात-उषा के अवगुण्ठन से, झींगुर की झनकारों से;
रात सितारों वाली होगी, स्वर्ण किरण वाली दोपहर,
सन्ध्या का आँगन भर देंगे उड़ती चिड़ियों के स्वर-पर ।

अभी उठूँगा औ’ जाऊँगा, क्योंकि सदा दिन हो या रात
मुझे सुनाई देती रहती, लहरों से कूलों की बात;
चलता रहूँ सड़क पर, चाहे खड़ा रहूँ मैं पटरी पर,
उनका स्वर मुखरित होता है मेरे मानस के अन्दर ।

अभी यहाँ से उठकर चलकर इनिसफ़िरी को जाऊँगा,
मिट्टी-सरकण्डों की छोटी कुटिया एक बनाऊँगा;
तरु पर एक शहद का छत्ता, मटर सतर नौ माटी में –
यहाँ करूँगा वास अकेले मधुकर-गुंजित घाटी में ।

मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित

लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
          William Butler Yeats
     The Lake Isle of Innisfree

I will arise and go now, and go to Innisfree,
And a small cabin build there, of clay and wattles made;
Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee,
And live alone in the bee-loud glade.

And I shall have some peace there, for peace comes dropping slow,
Dropping from the veils of the morning to where the cricket sings;
There midnight’s all a glimmer, and noon a purple glow,
And evening full of the linnet’s wings.

I will arise and go now, for always night and day
I hear lake water lapping with low sounds by the shore;
While I stand on the roadway, or on the pavements grey,
I hear it in the deep heart’s core.

I will arise and go now, and go to Innisfree,
And a small cabin build there, of clay and wattles made;
Nine bean-rows will I have there, a hive for the honey-bee,
And live alone in the bee-loud glade.