"हम देखेंगे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | ||
}} | }} | ||
+ | <poem> | ||
+ | हम देखेंगे | ||
+ | लाज़िम है कि हम भी देखेंगे | ||
+ | वो दिन कि जिसका वादा है | ||
+ | जो लोह-ए-अज़ल<ref>विधि के विधान</ref> में लिखा है | ||
+ | जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां <ref>घने पहाड़</ref> | ||
+ | रुई की तरह उड़ जाएँगे | ||
+ | हम महकूमों<ref>रियाया या शासित</ref> के पाँव तले | ||
+ | ये धरती धड़-धड़ धड़केगी | ||
+ | और अहल-ए-हकम<ref>सताधीश</ref> के सर ऊपर | ||
+ | जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी | ||
+ | जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से | ||
+ | सब बुत<ref>सत्ताधारियों के प्रतीक पुतले</ref> उठवाए जाएँगे | ||
+ | हम अहल-ए-सफ़ा<ref>साफ़ सुथरे लोग</ref>, मरदूद-ए-हरम<ref>धर्मस्थल में प्रवेश से वंचित लोग</ref> | ||
+ | मसनद पे बिठाए जाएँगे | ||
+ | सब ताज उछाले जाएँगे | ||
+ | सब तख़्त गिराए जाएँगे | ||
− | + | बस नाम रहेगा अल्लाह<ref>ईश्वर</ref> का | |
− | + | जो ग़ायब भी है हाज़िर भी | |
− | + | जो मंज़र<ref>दृश्य</ref> भी है नाज़िर<ref>देखने वाला </ref> भी | |
− | जो | + | उट्ठेगा अन-अल-हक़<ref>मैं ही सत्य हूँ या अहम् ब्रह्मास्मि</ref> का नारा |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | ||
+ | और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा<ref>आम जनता</ref> | ||
+ | जो मैं भी हूँ और तुम भी हो | ||
+ | </poem> | ||
+ | |||
+ | ==शब्दार्थ == | ||
+ | |||
+ | <references/> |
01:27, 3 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल<ref>विधि के विधान</ref> में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां <ref>घने पहाड़</ref>
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों<ref>रियाया या शासित</ref> के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम<ref>सताधीश</ref> के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत<ref>सत्ताधारियों के प्रतीक पुतले</ref> उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा<ref>साफ़ सुथरे लोग</ref>, मरदूद-ए-हरम<ref>धर्मस्थल में प्रवेश से वंचित लोग</ref>
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह<ref>ईश्वर</ref> का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र<ref>दृश्य</ref> भी है नाज़िर<ref>देखने वाला </ref> भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़<ref>मैं ही सत्य हूँ या अहम् ब्रह्मास्मि</ref> का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा<ref>आम जनता</ref>
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
शब्दार्थ
<references/>