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"उऋण कभी होना नहीं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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जीवन में मुझको मिले, केवल तेरा प्यार।
 
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जग में फिर इससे बड़ा कोई ना उपहार।।
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श्वास -श्वास प्रतिपल करे, इतना सा आख्यान।
 
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जीवन में हरदम मिले,   तुम्हें प्यार सम्मान।।               
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जीवन में हरदम मिले, तुम्हें प्यार सम्मान।।               
 
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जीवन में बस तुम मिलो, मुझको तो हर बार।
 
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इससे बढ़कर कुछ नहीं, इस जग का उपहार।।
 
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गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।
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दुर्जन सुधरें ना कभी, लाख करो उपचार॥
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चाहे तीरथ घूम लो,पढ़ लो  सभी पुराण ।
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छल -कपट मन  में भरे, हो कैसे कल्याण ॥
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वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट कटार ।
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लाख भजन करते रहो, जीवन है बेकार ॥
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आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।
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घर-बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥
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जनम- जनम की साधना, प्राणों की मनुहार।
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पुनर्जन्म यदि हो कभी, मिले तुम्हारा द्वार।
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दरवाज़े कम हैं यहाँ, लाखों हैं दीवार ।                           
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हार गया पथ ढूँढते, बहुत दूर है प्यार।                           
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आँगन -आँगन पूछता, कहाँ छुपे हो मीत।
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दो पल आकरके मिलो, तुम्हें तरसती प्रीत।             
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08:41, 17 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

236
उऋण कभी होना नहीं, मुझ पर बहुत उधार।
 कभी चुकाए ना चुके, इतना तेरा प्यार।।
237
जीवन में मुझको मिले, केवल तेरा प्यार।
जग में फिर इससे बड़ा, कोई ना उपहार।।
238
श्वास -श्वास प्रतिपल करे, इतना सा आख्यान।
जीवन में हरदम मिले, तुम्हें प्यार सम्मान।।
239
जीवन में बस तुम मिलो, मुझको तो हर बार।
इससे बढ़कर कुछ नहीं, इस जग का उपहार।।
240
गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।
दुर्जन सुधरें ना कभी, लाख करो उपचार॥
241
चाहे तीरथ घूम लो,पढ़ लो सभी पुराण ।
छल -कपट मन में भरे, हो कैसे कल्याण ॥
242
वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट कटार ।
लाख भजन करते रहो, जीवन है बेकार ॥
243
आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।
घर-बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥
244
जनम- जनम की साधना, प्राणों की मनुहार।
पुनर्जन्म यदि हो कभी, मिले तुम्हारा द्वार।
245
दरवाज़े कम हैं यहाँ, लाखों हैं दीवार ।
हार गया पथ ढूँढते, बहुत दूर है प्यार।
246
आँगन -आँगन पूछता, कहाँ छुपे हो मीत।
दो पल आकरके मिलो, तुम्हें तरसती प्रीत।