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"चौक / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर

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उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
 
उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
 
जिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।
 
जिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।
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हर सुबह काम पर जाती थीं
 
हर सुबह काम पर जाती थीं
 
मेरा स्‍कूल उनके रास्‍ते में पड़ता था
 
मेरा स्‍कूल उनके रास्‍ते में पड़ता था
मां मुझे उनके हवाले कर देती थीं
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माँ मुझे उनके हवाले कर देती थीं
छुटटी होने पर मैं उनका इन्‍तजार करता था
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छुटटी होने पर मैं उनका इन्‍तज़ार करता था
उन्‍होंने मुझे इन्‍तजार करना सिखाय
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उन्‍होंने मुझे इन्‍तज़ार करना सिखाया
  
 
कस्‍बे के स्‍कूल में
 
कस्‍बे के स्‍कूल में
मैंने पहली बार ही दाखिला लिया था
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मैंने पहली बार ही दाख़िला लिया था
 
कुछ दिनों बाद मैं
 
कुछ दिनों बाद मैं
खुद ही जाने लगा
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ख़ुद ही जाने लगा
 
और उसके भी कुछ दिनों बाद
 
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कई लड़के मेरे दोस्‍त बन गए
 
कई लड़के मेरे दोस्‍त बन गए
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उन थोड़े से दिनों के कई दशकों बाद भी
 
उन थोड़े से दिनों के कई दशकों बाद भी
 
जब कभी मैं किसी बड़े शहर के
 
जब कभी मैं किसी बड़े शहर के
बेतरतीब चौक से गुजरता हूं
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बेतरतीब चौक से गुज़रता हूँ
 
उन स्त्रियों की याद आती है
 
उन स्त्रियों की याद आती है
और मैं अपना दायां हाथ उनकी ओर
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और मैं अपना दायाँ हाथ उनकी ओर
बढा देता हूं
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बढा देता हूँ
बायें हाथ से स्‍लेट को संभालता हूं
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बायें हाथ से स्‍लेट को संभालता हूँ
 
जिसे मैं छोड़ आया था
 
जिसे मैं छोड़ आया था
बीस वर्षों के आखबारों के पीछ।
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बीस वर्षों के अख़बारों के पीछे।
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00:47, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

उन स्त्रियों का वैभव मेरे साथ रहा
जिन्‍होंने मुझे चौक पार करना सिखाया।

मेरे मोहल्‍ले की थीं वे
हर सुबह काम पर जाती थीं
मेरा स्‍कूल उनके रास्‍ते में पड़ता था
माँ मुझे उनके हवाले कर देती थीं
छुटटी होने पर मैं उनका इन्‍तज़ार करता था
उन्‍होंने मुझे इन्‍तज़ार करना सिखाया

कस्‍बे के स्‍कूल में
मैंने पहली बार ही दाख़िला लिया था
कुछ दिनों बाद मैं
ख़ुद ही जाने लगा
और उसके भी कुछ दिनों बाद
कई लड़के मेरे दोस्‍त बन गए
तब हम साथ-साथ कई दूसरे रास्‍तों
से भी स्‍कूल आने-जाने लगे

लेकिन अब भी
उन थोड़े से दिनों के कई दशकों बाद भी
जब कभी मैं किसी बड़े शहर के
बेतरतीब चौक से गुज़रता हूँ
उन स्त्रियों की याद आती है
और मैं अपना दायाँ हाथ उनकी ओर
बढा देता हूँ
बायें हाथ से स्‍लेट को संभालता हूँ
जिसे मैं छोड़ आया था
बीस वर्षों के अख़बारों के पीछे।