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"जब अमृत बरसा / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

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'''जब अमृत बरसा
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उछलती, मदमाती आई,
 
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चंचल, अल्हड़ इक धारा,
 
चंचल, अल्हड़ इक धारा,
 
 
सहसा, टूटकर, बिखर गई,
 
सहसा, टूटकर, बिखर गई,
 
 
उस ऊँचे पत्थर के ऊपर,
 
उस ऊँचे पत्थर के ऊपर,
 
 
वक्र हूई दृष्टी,  
 
वक्र हूई दृष्टी,  
 
 
हुआ कुपित चट्टान,
 
हुआ कुपित चट्टान,
 
 
निर्जन वन में, थामे खड़ा मैं, ज्यों सातों आसमान,
 
निर्जन वन में, थामे खड़ा मैं, ज्यों सातों आसमान,
 
 
जड़ें मेरी पाताल को हैं जातीँ,
 
जड़ें मेरी पाताल को हैं जातीँ,
 
 
कंधों पर ठहर ठहर जाते बादल,
 
कंधों पर ठहर ठहर जाते बादल,
 
 
किसनें ? किसने भिगोयी मेरी, ये वज्र सी छाती,
 
किसनें ? किसने भिगोयी मेरी, ये वज्र सी छाती,
 
 
रुकी नहीं, थमी नहीं, चंचल धारा,
 
रुकी नहीं, थमी नहीं, चंचल धारा,
 
 
बह चली, पत्थर दर पत्थर,
 
बह चली, पत्थर दर पत्थर,
 
 
बोली, सहसा पलट
 
बोली, सहसा पलट
 
 
हां बिखेरी मैंने, अंजुरी भर भर
 
हां बिखेरी मैंने, अंजुरी भर भर
 
 
शीतल धारा,
 
शीतल धारा,
 
 
यूं रचा मैंने, तेरे गुहार में,
 
यूं रचा मैंने, तेरे गुहार में,
 
 
मुट्ठी भर जमीं,
 
मुट्ठी भर जमीं,
 
 
होगा कभी अंकुरित यहाँ,
 
होगा कभी अंकुरित यहाँ,
 
 
बरस बीते,
 
बरस बीते,
 
 
इक नन्हा सा, दूर देश का बीज
 
इक नन्हा सा, दूर देश का बीज
 
 
पिरो देगा वह कण-कण
 
पिरो देगा वह कण-कण
 
 
पतले अंखुआये नन्हें कोंपल,
 
पतले अंखुआये नन्हें कोंपल,
 
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दिखोगे तुम स्रष्टा
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कहलाओगे पालनकर्ता
 
कहलाओगे पालनकर्ता
 
 
विहंसा चट्टान,
 
विहंसा चट्टान,
 
 
शिला सी उसकी मुस्कान
 
शिला सी उसकी मुस्कान
 
 
पिघल गई धारा के साथ
 
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19:33, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

उछलती, मदमाती आई,
चंचल, अल्हड़ इक धारा,
सहसा, टूटकर, बिखर गई,
उस ऊँचे पत्थर के ऊपर,
वक्र हूई दृष्टी,
हुआ कुपित चट्टान,
निर्जन वन में, थामे खड़ा मैं, ज्यों सातों आसमान,
जड़ें मेरी पाताल को हैं जातीँ,
कंधों पर ठहर ठहर जाते बादल,
किसनें ? किसने भिगोयी मेरी, ये वज्र सी छाती,
रुकी नहीं, थमी नहीं, चंचल धारा,
बह चली, पत्थर दर पत्थर,
बोली, सहसा पलट
हां बिखेरी मैंने, अंजुरी भर भर
शीतल धारा,
यूं रचा मैंने, तेरे गुहार में,
मुट्ठी भर जमीं,
होगा कभी अंकुरित यहाँ,
बरस बीते,
इक नन्हा सा, दूर देश का बीज
पिरो देगा वह कण-कण
पतले अंखुआये नन्हें कोंपल,
दिखोगे तुम स्रष्टा
कहलाओगे पालनकर्ता
विहंसा चट्टान,
शिला सी उसकी मुस्कान
पिघल गई धारा के साथ