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"किरनें थकीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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23:09, 11 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
64
हवा क्या चली
बिखर गए सारे
गुलाबी पात
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
65
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
पीठ जकड़ी
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
66
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
‘मैं भी हूँ साथ’
थामकरके हाथ
सफ़र करें पूरा।
-0-
30/10/24