भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मासूम / लकड़ी की काठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: लकडी की काठी काठी पे घोड़ा <br /> घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा <br /> दौड़ा...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लकडी की काठी काठी पे घोड़ा <br />
+
{{KKGlobal}}
घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा <br />
+
{{KKFilmSongCategories
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा <br />
+
|वर्ग= बालगीत
<br />
+
}}
घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाइ <br />
+
{{KKFilmRachna
घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो बनाई <br />
+
|रचनाकार= गुलज़ार
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग<br />
+
}}
घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाइ <br />
+
<poem>
घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो बनाई <br />
+
लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा  
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा <br />
+
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
<br />
+
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा  
घोड़ा था घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी <br />
+
 
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी <br />
+
घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाई
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग<br />
+
घोड़ेजी की नाई ने हजामत जो बनाई  
घोड़ा था घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी <br />
+
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा  
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी <br />
+
लकड़ी की काठी...
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा <br />
+
 
<br />
+
घोड़ा था घमण्डी पहुँचा सब्जी मण्डी  
घोड़ा अपना तगडा है देखो कितनी चरबी है <br />
+
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी  
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है <br />
+
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा  
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बग<br />
+
लकड़ी की काठी...
घोड़ा अपना तगडा है देखो कितनी चरबी है<br />
+
 
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है <br />
+
घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है  
बांह छुडा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा <br />
+
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है  
<br />
+
बांह छुड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा  
लकडी की काठी काठी पे घोड़ा <br />
+
लकड़ी की काठी...
घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा <br />
+
</poem>
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा <br />
+

03:51, 20 मार्च 2010 के समय का अवतरण

रचनाकार: गुलज़ार                 

लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा
घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाई
घोड़ेजी की नाई ने हजामत जो बनाई
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा था घमण्डी पहुँचा सब्जी मण्डी
सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी बरफ में लग गई ठंडी
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...

घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है
चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
बांह छुड़ा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकड़ी की काठी...