भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बुलबुला / संजय चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्...)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
बाद में फोड़े नहीं फूटता
 
बाद में फोड़े नहीं फूटता
  
बेलबुले से आते हैं संदेश
+
बुलबुले से आते हैं संदेश
 
बच्चों के लिए
 
बच्चों के लिए
 
लोगों के लिए
 
लोगों के लिए

01:36, 26 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण


बुलबुले में रहने के लिए
कुछ किराया नहीं लगता
आदमी ख़ुद अपने बुलबुले का मालिक होता है

शुरू में होता है छुई-मुई
बाद में फोड़े नहीं फूटता

बुलबुले से आते हैं संदेश
बच्चों के लिए
लोगों के लिए
ब्रह्माण्ड के लिए

बुलबुले के अन्दर दुनिया का शोर नहीं पहुँचता
बुलबुले के अन्दर होता है मोक्ष

एक दिन उठ जाता है बुलबुला
सूखी रह जाती है धरती
जिस पर टिका था बुलबुला।