भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न चाहूं मान / राम प्रसाद बिस्मिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:देशभक्ति]]
 
[[Category:देशभक्ति]]
 +
<poem>
 +
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
 +
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
  
न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br>
+
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
 +
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
  
मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।<br><br>
+
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
 +
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
  
करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।<br>
+
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
 +
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
  
अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।<br> <br>
+
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
 +
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
  
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखूं  हिन्दी ।<br>
+
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
 
+
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना</poem>
चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।<br><br>
+
 
+
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।<br>
+
 
+
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।<br><br>
+
 
+
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।<br>
+
 
+
करुं में प्राण  तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।<br><br>
+
 
+
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम<br>
+
 
+
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।<br><br>
+

07:52, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना