भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सौदा / परिचय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) (मिर्ज़ा रफ़ी सौदा का जीवन परिचय) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो (मिर्ज़ा रफ़ी 'सौदा' / परिचय यह लेख का नाम बदल कर सौदा / परिचय कर दिया गया हैं (अनुप्रेषित)) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | मिर्ज़ा रफ़ी ‘'''सौदा'''’ का पूरा परिचय '''मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी''' है| आपका जन्म देहली में '''हिजरी ११२५''' (१७१३ ई.) में हुआ| कुछ तज़्करों के अनुसार १७१२ ई. में माना जाता है| ‘सौदा’ ने ग़ज़ल, मर्सिया, क़सीदा, हजो, तज़मीन, शहर-आशोब आदि बहुत-सी विधाओं में अपना सुखन कहा है| ‘सौदा’ का एक दीवान फ़ारसी और एक उर्दू में मिलता है| एक तज़्करा भी लिखा था जो किन्हीं कारणों वश अब उपलब्ध नहीं हैं| आपने पहले पहल सुलैमान कुली ख़ान ‘वदाद’ की और बाद में अपने ज़माने के मशहूर शाइर शाह ‘हातिम’ को अपना उस्ताद किया| ख़ुद ‘सौदा के शागिर्दों में सम्राट शाह आलाम भी शामिल थे| ‘सौदा’ ने अब्दाली और मराठों की ग़ारतगरी के बाद साठ साल की उम्र में देहली छोड़ दी थी| कुछ साल फ़र्रुख़ाबाद के नवाब अहमद ख़ान के मुलाज़िम और उस्ताद रहे| नवाब की मृत्यु के बाद फ़ैज़ाबाद चले गये जो तब अवध की राजधानी हुआ करता था| अब नवाब शुजाउद्दौला के मुलाज़िम हुए| जब लखनऊ को राजधानी क़रार किया गया तब फ़ैज़ाबाद से लखनऊ आ गये| कुछ समय के नवाब के साथ अनबन रही लेकिन समय के साथ मसला सुलझ गया| इस सब के बावजूद नवाब की ओर से ‘सौदा’ को '''मलकुश्शुउरा''' का ख़िताब पाया और छ: हज़ार रुपये सलाना का वज़ीफ़ा बाँधा गया| ‘सौदा’ '''हिजरी ११९५''' (१७८१ ई.), '''लखनऊ''' में अल्लाह को प्यारे हो गये| | + | {{KKRachnakaarParichay |
+ | |रचनाकार=सौदा | ||
+ | }}मिर्ज़ा रफ़ी ‘'''सौदा'''’ का पूरा परिचय '''मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी''' है| आपके नाम में ''''सौदा'''' का अर्थ ''''उन्माद'''' है। आपका जन्म देहली में '''हिजरी ११२५''' (१७१३ ई.) में हुआ| कुछ तज़्करों के अनुसार १७१२ ई. में माना जाता है| ‘सौदा’ ने ग़ज़ल, मर्सिया, क़सीदा, हजो, तज़मीन, शहर-आशोब आदि बहुत-सी विधाओं में अपना सुखन कहा है| ‘सौदा’ का एक दीवान फ़ारसी और एक उर्दू में मिलता है| एक तज़्करा भी लिखा था जो किन्हीं कारणों वश अब उपलब्ध नहीं हैं| आपने पहले पहल सुलैमान कुली ख़ान ‘वदाद’ की और बाद में अपने ज़माने के मशहूर शाइर शाह ‘हातिम’ को अपना उस्ताद किया| ख़ुद ‘सौदा के शागिर्दों में सम्राट शाह आलाम भी शामिल थे| ‘सौदा’ ने अब्दाली और मराठों की ग़ारतगरी के बाद साठ साल की उम्र में देहली छोड़ दी थी| कुछ साल फ़र्रुख़ाबाद के नवाब अहमद ख़ान के मुलाज़िम और उस्ताद रहे| नवाब की मृत्यु के बाद फ़ैज़ाबाद चले गये जो तब अवध की राजधानी हुआ करता था| अब नवाब शुजाउद्दौला के मुलाज़िम हुए| जब लखनऊ को राजधानी क़रार किया गया तब फ़ैज़ाबाद से लखनऊ आ गये| कुछ समय के नवाब के साथ अनबन रही लेकिन समय के साथ मसला सुलझ गया| इस सब के बावजूद नवाब की ओर से ‘सौदा’ को '''मलकुश्शुउरा''' का ख़िताब पाया और छ: हज़ार रुपये सलाना का वज़ीफ़ा बाँधा गया| ‘सौदा’ '''हिजरी ११९५''' (१७८१ ई.), '''लखनऊ''' में अल्लाह को प्यारे हो गये| |