भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पिता / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("पिता / कुँअर बेचैन" सुरक्षित कर दिया: सुरक्षित कर दिया गया है [edit=sysop:move=sysop])
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
 
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
+
}}{{KKCatKavita}}
 +
{{KKAnthologyPita}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
ओ पिता,
 
ओ पिता,

01:07, 19 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

ओ पिता,
तुम गीत हो घर के
और अनगिन काम दफ़्तर के।

छाँव में हम रह सकें यूँ ही
धूप में तुम रोज़ जलते हो
तुम हमें विश्वास देने को
दूर, कितनी दूर चलते हो

ओ पिता,
तुम दीप हो घर के
और सूरज-चाँद अंबर के।

तुम हमारे सब अभावों की
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
मुक्ति देते ही रहे हमको
स्वयं दुख के जाल में फँसकर

ओ पिता,
तुम स्वर, नए स्वर के
नित नये संकल्प निर्झर के।