"झील पर पंछी:एक / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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नदी मुख पर जमा हैं | नदी मुख पर जमा हैं | ||
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पंछियों के परिवार | पंछियों के परिवार | ||
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बहुत दूरियों से उड़कर आये हैं | बहुत दूरियों से उड़कर आये हैं | ||
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विपाशा के तट पर | विपाशा के तट पर | ||
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वे यायावर | वे यायावर | ||
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इन्होंने लांघी हैं | इन्होंने लांघी हैं | ||
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ठण्डे ध्रुव रेगिस्तानों | ठण्डे ध्रुव रेगिस्तानों | ||
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दूभर मैदानों की दूरियां | दूभर मैदानों की दूरियां | ||
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बड़े उत्साह के साथ | बड़े उत्साह के साथ | ||
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पार किए हैं | पार किए हैं | ||
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नीले, पीले, लाल | नीले, पीले, लाल | ||
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बदराये आसमान | बदराये आसमान | ||
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राह के पानियों में | राह के पानियों में | ||
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देखे हैं इन्होंने | देखे हैं इन्होंने | ||
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सूरज और चांद के प्रतिबिम्ब | सूरज और चांद के प्रतिबिम्ब | ||
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उड़ते-उड़ते | उड़ते-उड़ते | ||
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अपने वंश को बढ़ाते | अपने वंश को बढ़ाते | ||
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तय की हैं इन्होंने | तय की हैं इन्होंने | ||
− | + | हिमालयी ऊँचाइयाँ भी | |
− | हिमालयी | + | |
− | + | ||
जच्चगी सही है इनकी मादाओं ने | जच्चगी सही है इनकी मादाओं ने | ||
− | |||
देवतरुओं की टहनियों पर | देवतरुओं की टहनियों पर | ||
− | |||
खुले आकाश के नीचे | खुले आकाश के नीचे | ||
− | |||
सर्दियों में ये आते हैं | सर्दियों में ये आते हैं | ||
− | + | बर्फ़ के मैदानों से | |
− | + | ||
− | + | ||
गर्मियों में लौट जायेंगे | गर्मियों में लौट जायेंगे | ||
− | |||
अपने-अपने घर | अपने-अपने घर | ||
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नदी तट का यह महोत्सव | नदी तट का यह महोत्सव | ||
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संगीत और नाच | संगीत और नाच | ||
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सब हो जाएगा समाप्त | सब हो जाएगा समाप्त | ||
− | |||
झील को घेर लेगा | झील को घेर लेगा | ||
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फिर वही निर्जन एकान्त | फिर वही निर्जन एकान्त | ||
− | + | नदी द्वीपों पर बँधी होंगी | |
− | नदी द्वीपों पर | + | |
− | + | ||
फिर मल्लाहों की नावें | फिर मल्लाहों की नावें | ||
− | |||
रिमझिम होगी | रिमझिम होगी | ||
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पास की वनखण्डियों में | पास की वनखण्डियों में | ||
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एक अलग ऋतुचर्या | एक अलग ऋतुचर्या | ||
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होगी प्रदर्शित। | होगी प्रदर्शित। | ||
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02:47, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
(आगमन)
नदी मुख पर जमा हैं
पंछियों के परिवार
बहुत दूरियों से उड़कर आये हैं
विपाशा के तट पर
वे यायावर
इन्होंने लांघी हैं
ठण्डे ध्रुव रेगिस्तानों
दूभर मैदानों की दूरियां
बड़े उत्साह के साथ
पार किए हैं
नीले, पीले, लाल
बदराये आसमान
राह के पानियों में
देखे हैं इन्होंने
सूरज और चांद के प्रतिबिम्ब
उड़ते-उड़ते
अपने वंश को बढ़ाते
तय की हैं इन्होंने
हिमालयी ऊँचाइयाँ भी
जच्चगी सही है इनकी मादाओं ने
देवतरुओं की टहनियों पर
खुले आकाश के नीचे
सर्दियों में ये आते हैं
बर्फ़ के मैदानों से
गर्मियों में लौट जायेंगे
अपने-अपने घर
नदी तट का यह महोत्सव
संगीत और नाच
सब हो जाएगा समाप्त
झील को घेर लेगा
फिर वही निर्जन एकान्त
नदी द्वीपों पर बँधी होंगी
फिर मल्लाहों की नावें
रिमझिम होगी
पास की वनखण्डियों में
एक अलग ऋतुचर्या
होगी प्रदर्शित।