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"पेड़ / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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बोलता है मेरे अन्दर | बोलता है मेरे अन्दर | ||
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खुलते हैं स्मृतियों के झरोखे | खुलते हैं स्मृतियों के झरोखे | ||
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एक के बाद एक | एक के बाद एक | ||
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चेतना के गलियारे में | चेतना के गलियारे में | ||
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जहन है भवन | जहन है भवन | ||
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जिसके शिखरस्थ कक्ष में | जिसके शिखरस्थ कक्ष में | ||
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एक पुरुष कर रहा नमन | एक पुरुष कर रहा नमन | ||
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शून्य में बैठे | शून्य में बैठे | ||
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एक अन्य अदृश्य | एक अन्य अदृश्य | ||
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विराट पुरुष को | विराट पुरुष को | ||
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जहाँ संयमित है | जहाँ संयमित है | ||
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अनादि अन्तरिक्ष का | अनादि अन्तरिक्ष का | ||
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अमृत सरोवर | अमृत सरोवर | ||
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शान्त | शान्त | ||
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ब्रह्मण्ड की एक मंजूषा है | ब्रह्मण्ड की एक मंजूषा है | ||
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अनगिन पंखुडियों वाला | अनगिन पंखुडियों वाला | ||
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वृहद कमल | वृहद कमल | ||
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माया है अधोगत | माया है अधोगत | ||
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पेड़ डोलता है मेरे अन्दर | पेड़ डोलता है मेरे अन्दर | ||
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अवयव हैं जिसकी इन्द्रियाँ | अवयव हैं जिसकी इन्द्रियाँ | ||
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रक्त है रस | रक्त है रस | ||
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अस्थियाँ हैं टहनियाँ | अस्थियाँ हैं टहनियाँ | ||
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स्नायुतंत्र इन्द्रचाप | स्नायुतंत्र इन्द्रचाप | ||
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प्राणों के आबशार भी | प्राणों के आबशार भी | ||
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फैले हर ओर | फैले हर ओर | ||
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देह की ढलानों पर | देह की ढलानों पर | ||
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पेड़ स्थित है आदिम | पेड़ स्थित है आदिम | ||
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समुद्र की सतह पर | समुद्र की सतह पर | ||
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जल में पारावार | जल में पारावार | ||
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कभी घुलता है | कभी घुलता है | ||
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कर्पूरी सुगन्ध के साथ | कर्पूरी सुगन्ध के साथ | ||
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कभी उगता है | कभी उगता है | ||
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फूलों की तरह | फूलों की तरह | ||
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करता कायान्तर | करता कायान्तर | ||
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अहर्निश। | अहर्निश। | ||
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04:29, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
एक पेड़ रह-रह कर
बोलता है मेरे अन्दर
खुलते हैं स्मृतियों के झरोखे
एक के बाद एक
चेतना के गलियारे में
जहन है भवन
जिसके शिखरस्थ कक्ष में
एक पुरुष कर रहा नमन
शून्य में बैठे
एक अन्य अदृश्य
विराट पुरुष को
जहाँ संयमित है
अनादि अन्तरिक्ष का
अमृत सरोवर
शान्त
ब्रह्मण्ड की एक मंजूषा है
अनगिन पंखुडियों वाला
वृहद कमल
माया है अधोगत
पेड़ डोलता है मेरे अन्दर
अवयव हैं जिसकी इन्द्रियाँ
रक्त है रस
अस्थियाँ हैं टहनियाँ
स्नायुतंत्र इन्द्रचाप
प्राणों के आबशार भी
फैले हर ओर
देह की ढलानों पर
पेड़ स्थित है आदिम
समुद्र की सतह पर
जल में पारावार
कभी घुलता है
कर्पूरी सुगन्ध के साथ
कभी उगता है
फूलों की तरह
करता कायान्तर
अहर्निश।