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घर... | घर... | ||
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रहते उसमें अदृश्य आदमी | रहते उसमें अदृश्य आदमी | ||
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आदमियों में रहता घर अदृश्य | आदमियों में रहता घर अदृश्य | ||
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दोनों रात को अकेलेपन में | दोनों रात को अकेलेपन में | ||
+ | होते मुझ में एकमय | ||
− | + | एक अजब-सी हवा है | |
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− | एक अजब सी हवा है | + | |
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जो खटखटाती है | जो खटखटाती है | ||
− | + | रह-रह कर मेरा द्वार | |
− | रह रह कर मेरा द्वार | + | |
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मैं चलने लगता हूँ नींद में | मैं चलने लगता हूँ नींद में | ||
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नींद में ही खुलता है दृष्टि पथ | नींद में ही खुलता है दृष्टि पथ | ||
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उतरता हूँ सीढिय़ाँ अदृश्य | उतरता हूँ सीढिय़ाँ अदृश्य | ||
− | + | मैं और वह सीढिय़ाँ उतरते हैं | |
− | मैं और सीढिय़ाँ उतरते हैं | + | |
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एक-दूसरे में परस्पर | एक-दूसरे में परस्पर | ||
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देखता हूँ अपने कन्धों पर फैलता | देखता हूँ अपने कन्धों पर फैलता | ||
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गहन-नीला आसमान | गहन-नीला आसमान | ||
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वह भी चलता है साथ-साथ | वह भी चलता है साथ-साथ | ||
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अपने जादुई चित्रों के साथ | अपने जादुई चित्रों के साथ | ||
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दरीचों से झाँकती हैं गली में | दरीचों से झाँकती हैं गली में | ||
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अदृश्य आदमियों की | अदृश्य आदमियों की | ||
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टेढ़ी-तिरछी आँखें | टेढ़ी-तिरछी आँखें | ||
− | + | दरवाज़ों, खिड़कियों और हवाकश | |
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− | + | ||
वातायनों से | वातायनों से | ||
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बनातीं रहस्यमय कोलाज | बनातीं रहस्यमय कोलाज | ||
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मैं नहीं हूँ नहीं अपने आसपास | मैं नहीं हूँ नहीं अपने आसपास | ||
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महज पगध्वनियाँ हैं दूरस्थ | महज पगध्वनियाँ हैं दूरस्थ | ||
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बजतीं किसी दूसरी बस्ती में | बजतीं किसी दूसरी बस्ती में | ||
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बहुगुणित होतीं | बहुगुणित होतीं | ||
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जैसे एक के बाद एक उभरतीं | जैसे एक के बाद एक उभरतीं | ||
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स्मृतियाँ | स्मृतियाँ | ||
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आग, धुआँ और लपटें | आग, धुआँ और लपटें | ||
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कहीं दूर जंगल में | कहीं दूर जंगल में | ||
− | + | नज़र आता फिर वही घर | |
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− | + | ||
अपार पानी की सतह पर | अपार पानी की सतह पर | ||
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डगमगाता | डगमगाता | ||
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संवाद करतीं दूर से आती हवायें | संवाद करतीं दूर से आती हवायें | ||
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उसके साथ | उसके साथ | ||
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बतियाते अदृश्य आदमी भी | बतियाते अदृश्य आदमी भी | ||
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उसको नाव की तरह खेते | उसको नाव की तरह खेते | ||
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चन्द्रमा पूनम का | चन्द्रमा पूनम का | ||
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अपार सागर तल पर | अपार सागर तल पर | ||
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एकाएक धुन्ध में पड़ जाता मद्घम | एकाएक धुन्ध में पड़ जाता मद्घम | ||
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बिम्ब उसके होते जल में विलीन | बिम्ब उसके होते जल में विलीन | ||
− | + | और उसके साथ-साथ | |
− | और उसके साथ साथ | + | मेरी स्वापक चेतना भी |
− | + | ||
− | मेरी स्वापक | + | |
− | + | ||
जो कर रही थी | जो कर रही थी | ||
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अभी-अभी नींद में भ्रमण। | अभी-अभी नींद में भ्रमण। | ||
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13:37, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
घर...
रहते उसमें अदृश्य आदमी
आदमियों में रहता घर अदृश्य
दोनों रात को अकेलेपन में
होते मुझ में एकमय
एक अजब-सी हवा है
जो खटखटाती है
रह-रह कर मेरा द्वार
मैं चलने लगता हूँ नींद में
नींद में ही खुलता है दृष्टि पथ
उतरता हूँ सीढिय़ाँ अदृश्य
मैं और वह सीढिय़ाँ उतरते हैं
एक-दूसरे में परस्पर
देखता हूँ अपने कन्धों पर फैलता
गहन-नीला आसमान
वह भी चलता है साथ-साथ
अपने जादुई चित्रों के साथ
दरीचों से झाँकती हैं गली में
अदृश्य आदमियों की
टेढ़ी-तिरछी आँखें
दरवाज़ों, खिड़कियों और हवाकश
वातायनों से
बनातीं रहस्यमय कोलाज
मैं नहीं हूँ नहीं अपने आसपास
महज पगध्वनियाँ हैं दूरस्थ
बजतीं किसी दूसरी बस्ती में
बहुगुणित होतीं
जैसे एक के बाद एक उभरतीं
स्मृतियाँ
आग, धुआँ और लपटें
कहीं दूर जंगल में
नज़र आता फिर वही घर
अपार पानी की सतह पर
डगमगाता
संवाद करतीं दूर से आती हवायें
उसके साथ
बतियाते अदृश्य आदमी भी
उसको नाव की तरह खेते
चन्द्रमा पूनम का
अपार सागर तल पर
एकाएक धुन्ध में पड़ जाता मद्घम
बिम्ब उसके होते जल में विलीन
और उसके साथ-साथ
मेरी स्वापक चेतना भी
जो कर रही थी
अभी-अभी नींद में भ्रमण।