"विश्व छवि बुद्ध् / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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वज्रयानी बौद्घ मठ था वह | वज्रयानी बौद्घ मठ था वह | ||
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बुद्घ जहाँ लगते थे रुद्र | बुद्घ जहाँ लगते थे रुद्र | ||
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तांत्रिक गचकारियों से सुसज्जित | तांत्रिक गचकारियों से सुसज्जित | ||
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अवलोकितेश्वर | अवलोकितेश्वर | ||
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अपने प्रखर परिकर देवताओं के साथ | अपने प्रखर परिकर देवताओं के साथ | ||
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उच्च आसन पर विराजमान | उच्च आसन पर विराजमान | ||
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सहस्र मंगोल अवधारणाएँ | सहस्र मंगोल अवधारणाएँ | ||
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सहस्र कायान्तर रूप | सहस्र कायान्तर रूप | ||
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चक्रपाणि वे | चक्रपाणि वे | ||
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ब्रह्माण्ड को थे | ब्रह्माण्ड को थे | ||
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विराट फिरकी की तरह घुमाते | विराट फिरकी की तरह घुमाते | ||
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आद्य आकाश के देवपितर | आद्य आकाश के देवपितर | ||
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अपने से अलग | अपने से अलग | ||
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एक महत्ता चित्रकार | एक महत्ता चित्रकार | ||
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बेशक ऐसे तो वे देशान्तर | बेशक ऐसे तो वे देशान्तर | ||
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प्रतीतियों से बने | प्रतीतियों से बने | ||
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दिक्काल से छन-छन कर ही | दिक्काल से छन-छन कर ही | ||
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निर्मित होती है | निर्मित होती है | ||
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एक विश्व छवि | एक विश्व छवि | ||
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भारत के बुद्घ तो थे | भारत के बुद्घ तो थे | ||
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काश्यप राजकुमार सिद्घार्थ | काश्यप राजकुमार सिद्घार्थ | ||
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राज त्याग अपनाया जिन्होंने | राज त्याग अपनाया जिन्होंने | ||
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मुक्ति पथ | मुक्ति पथ | ||
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बोधिसत्व थे वे | बोधिसत्व थे वे | ||
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एक जन्मजात आध्यात्मिक प्रतिभा | एक जन्मजात आध्यात्मिक प्रतिभा | ||
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ज्ञान और भान के बीच | ज्ञान और भान के बीच | ||
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एक सुदृढ़ सेतु | एक सुदृढ़ सेतु | ||
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दु:ख से निर्वाण तक का | दु:ख से निर्वाण तक का | ||
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करुण रूप | करुण रूप | ||
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दक्षिण-पूर्व, जापान, चीन | दक्षिण-पूर्व, जापान, चीन | ||
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और फिर मध्य एशिया | और फिर मध्य एशिया | ||
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बाँस कुटीरों में | बाँस कुटीरों में | ||
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वह बने | वह बने | ||
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जेन सन्यासियों के | जेन सन्यासियों के | ||
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काव्य बिम्ब | काव्य बिम्ब | ||
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पद्मसूत्र का छना हुआ ज्ञान | पद्मसूत्र का छना हुआ ज्ञान | ||
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चीन में श्रमणों का स्थापत्य | चीन में श्रमणों का स्थापत्य | ||
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तिब्बत में मणिपदम | तिब्बत में मणिपदम | ||
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बामयान में दीर्घकाय ईश्वर | बामयान में दीर्घकाय ईश्वर | ||
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वह थे इतिहास के | वह थे इतिहास के | ||
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द्वापरोत्तर विष्णु | द्वापरोत्तर विष्णु | ||
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सहस्राक्ष | सहस्राक्ष | ||
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सहस्रपाद | सहस्रपाद | ||
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ब्रह्म सरोवर में खिले | ब्रह्म सरोवर में खिले | ||
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सहस्रदल कमल पर | सहस्रदल कमल पर | ||
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पीठासीन। | पीठासीन। | ||
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सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें | सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें | ||
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और हरी | और हरी | ||
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मखमली दूब | मखमली दूब | ||
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और वे हवाएँ | और वे हवाएँ | ||
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जो बचपन में खेलीं | जो बचपन में खेलीं | ||
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उसकी जोया | उसकी जोया | ||
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उसके अली के साथ | उसके अली के साथ | ||
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वह बरसों से घर नहीं गया | वह बरसों से घर नहीं गया | ||
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न मिल पाया | न मिल पाया | ||
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अपनी अन्धी दादी को | अपनी अन्धी दादी को | ||
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जो सुनाती थी | जो सुनाती थी | ||
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कश्मीरी में कहानियाँ | कश्मीरी में कहानियाँ | ||
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अल्लाताला से माँगती दुआ | अल्लाताला से माँगती दुआ | ||
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कि अहमद को रखना महफू$ज | कि अहमद को रखना महफू$ज | ||
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वह जिये | वह जिये | ||
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अपने पुश्तैनी फिकरोफन में | अपने पुश्तैनी फिकरोफन में | ||
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एक-से-एक गालीचे बुने | एक-से-एक गालीचे बुने | ||
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जो हों असली कश्मीरी | जो हों असली कश्मीरी | ||
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फुलकारी में | फुलकारी में | ||
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इरानियों से भी बेहतर | इरानियों से भी बेहतर | ||
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पर, सद अफसोस! | पर, सद अफसोस! | ||
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जाने कब क्या चूक हुई | जाने कब क्या चूक हुई | ||
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इस खुदाई मन्सूबे में | इस खुदाई मन्सूबे में | ||
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कि वह चला गया सरहद पार | कि वह चला गया सरहद पार | ||
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उसके हाथ थे | उसके हाथ थे | ||
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पीछे की ओर बँधे | पीछे की ओर बँधे | ||
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और आँखों पर भी थी पट्टिïयाँ | और आँखों पर भी थी पट्टिïयाँ | ||
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घेर कर ले गये थे उसे | घेर कर ले गये थे उसे | ||
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आदमजाद भेडिय़े सरहद पार | आदमजाद भेडिय़े सरहद पार | ||
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अपने जहादी लश्कर में | अपने जहादी लश्कर में | ||
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पीछे छूट गया था | पीछे छूट गया था | ||
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माँ का स्नेहिल चेहरा | माँ का स्नेहिल चेहरा | ||
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उसकी मानमनुहार | उसकी मानमनुहार | ||
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मांस के पकवान | मांस के पकवान | ||
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और मौसम में महकता | और मौसम में महकता | ||
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उसका आँगन | उसका आँगन | ||
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तारों की छाँव में गाता-नाचता | तारों की छाँव में गाता-नाचता | ||
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एक खुशनुमा कश्मीरी परिवार | एक खुशनुमा कश्मीरी परिवार | ||
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घर पर तारीं है अब | घर पर तारीं है अब | ||
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अनिर्वच आतंक | अनिर्वच आतंक | ||
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रात को जब | रात को जब | ||
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घाटी में फैलता है | घाटी में फैलता है | ||
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डरावना अँधेरा | डरावना अँधेरा | ||
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बेटे का ऐसा लगा सदमा | बेटे का ऐसा लगा सदमा | ||
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कि टूट गयी | कि टूट गयी | ||
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अब्बा रहमतुल्ला की कमर | अब्बा रहमतुल्ला की कमर | ||
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अहमद अब देख रहा | अहमद अब देख रहा | ||
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अपनी आत्मा के | अपनी आत्मा के | ||
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गाढ़े एकान्त में | गाढ़े एकान्त में | ||
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वादी में सूरज का डूबना | वादी में सूरज का डूबना | ||
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दूर दूर चमकतीं | दूर दूर चमकतीं | ||
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बर्फ की खामोश चोटियाँ | बर्फ की खामोश चोटियाँ | ||
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इन सब को तोल रहा वह | इन सब को तोल रहा वह | ||
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मन ही मन | मन ही मन | ||
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नेकी और बदी के तराजू में | नेकी और बदी के तराजू में | ||
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दर्ज करता | दर्ज करता | ||
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अपनी जाति की हार | अपनी जाति की हार | ||
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जेहन के फडफ़ड़ाते भोज पत्र पर | जेहन के फडफ़ड़ाते भोज पत्र पर | ||
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जिसे अब वह | जिसे अब वह | ||
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नहीं कर पायेगा अनलिखा। | नहीं कर पायेगा अनलिखा। |
18:57, 12 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
वज्रयानी बौद्घ मठ था वह
बुद्घ जहाँ लगते थे रुद्र
तांत्रिक गचकारियों से सुसज्जित
अवलोकितेश्वर
अपने प्रखर परिकर देवताओं के साथ
उच्च आसन पर विराजमान
सहस्र मंगोल अवधारणाएँ
सहस्र कायान्तर रूप
चक्रपाणि वे
ब्रह्माण्ड को थे
विराट फिरकी की तरह घुमाते
आद्य आकाश के देवपितर
अपने से अलग
एक महत्ता चित्रकार
बेशक ऐसे तो वे देशान्तर
प्रतीतियों से बने
दिक्काल से छन-छन कर ही
निर्मित होती है
एक विश्व छवि
भारत के बुद्घ तो थे
काश्यप राजकुमार सिद्घार्थ
राज त्याग अपनाया जिन्होंने
मुक्ति पथ
बोधिसत्व थे वे
एक जन्मजात आध्यात्मिक प्रतिभा
ज्ञान और भान के बीच
एक सुदृढ़ सेतु
दु:ख से निर्वाण तक का
करुण रूप
दक्षिण-पूर्व, जापान, चीन
और फिर मध्य एशिया
बाँस कुटीरों में
वह बने
जेन सन्यासियों के
काव्य बिम्ब
पद्मसूत्र का छना हुआ ज्ञान
चीन में श्रमणों का स्थापत्य
तिब्बत में मणिपदम
बामयान में दीर्घकाय ईश्वर
वह थे इतिहास के
द्वापरोत्तर विष्णु
सहस्राक्ष
सहस्रपाद
ब्रह्म सरोवर में खिले
सहस्रदल कमल पर
पीठासीन।
सोनमर्ग की सुतवाँ ढलानें
और हरी
मखमली दूब
और वे हवाएँ
जो बचपन में खेलीं
उसकी जोया
उसके अली के साथ
वह बरसों से घर नहीं गया
न मिल पाया
अपनी अन्धी दादी को
जो सुनाती थी
कश्मीरी में कहानियाँ
अल्लाताला से माँगती दुआ
कि अहमद को रखना महफू$ज
वह जिये
अपने पुश्तैनी फिकरोफन में
एक-से-एक गालीचे बुने
जो हों असली कश्मीरी
फुलकारी में
इरानियों से भी बेहतर
पर, सद अफसोस!
जाने कब क्या चूक हुई
इस खुदाई मन्सूबे में
कि वह चला गया सरहद पार
उसके हाथ थे
पीछे की ओर बँधे
और आँखों पर भी थी पट्टिïयाँ
घेर कर ले गये थे उसे
आदमजाद भेडिय़े सरहद पार
अपने जहादी लश्कर में
पीछे छूट गया था
माँ का स्नेहिल चेहरा
उसकी मानमनुहार
मांस के पकवान
और मौसम में महकता
उसका आँगन
तारों की छाँव में गाता-नाचता
एक खुशनुमा कश्मीरी परिवार
घर पर तारीं है अब
अनिर्वच आतंक
रात को जब
घाटी में फैलता है
डरावना अँधेरा
बेटे का ऐसा लगा सदमा
कि टूट गयी
अब्बा रहमतुल्ला की कमर
अहमद अब देख रहा
अपनी आत्मा के
गाढ़े एकान्त में
वादी में सूरज का डूबना
दूर दूर चमकतीं
बर्फ की खामोश चोटियाँ
इन सब को तोल रहा वह
मन ही मन
नेकी और बदी के तराजू में
दर्ज करता
अपनी जाति की हार
जेहन के फडफ़ड़ाते भोज पत्र पर
जिसे अब वह
नहीं कर पायेगा अनलिखा।