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प्रिय भाई अनिल एकलव्य जी! | प्रिय भाई अनिल एकलव्य जी! | ||
आज आप से बातचीत की शुरूआत हो रही है। हम कविता कोश से जुड़े सभी लोग कोश में आपके द्वारा किए जा रहे काम को देखकर बेहद प्रसन्न हैं और आपकी सक्रियता की प्रशंसा करते रहते हैं। आप अच्छा काम कर रहे हैं। हम लोग आभारी हैं। आगे भी ऎसे ही सक्रिय रहें। जैसे ही आपके मन में कोई सवाल आए, हमसे तुरन्त कविता कोश के पते पर ई०मेल से सम्पर्क करें। कविता कोश का ई० मेल पता कोश के मुखपृष्ठ पर लिखा है। | आज आप से बातचीत की शुरूआत हो रही है। हम कविता कोश से जुड़े सभी लोग कोश में आपके द्वारा किए जा रहे काम को देखकर बेहद प्रसन्न हैं और आपकी सक्रियता की प्रशंसा करते रहते हैं। आप अच्छा काम कर रहे हैं। हम लोग आभारी हैं। आगे भी ऎसे ही सक्रिय रहें। जैसे ही आपके मन में कोई सवाल आए, हमसे तुरन्त कविता कोश के पते पर ई०मेल से सम्पर्क करें। कविता कोश का ई० मेल पता कोश के मुखपृष्ठ पर लिखा है। | ||
− | अनिल जी, हेराल्ड पिंटर की वे कविताएँ किसी तक़नीकी | + | अनिल जी, हेराल्ड पिंटर की वे कविताएँ किसी तक़नीकी ख़ामी के कारण हो सकता है मुझे हटानी पड़ी होंगी। लेकिन मैंने हेराल्ड पिंटर का खाता खोलकर देखा तो उनके नाम में वे कविताएँ पहले से ही उपस्थित हैं और अनुवादक के रूप में आप ही का नाम लिखा है। इसलिए इस बार फिर से आपके द्वारा पुनर्स्थापित दोनों पृष्ठ मैंने हटा दिए हैं। आपके वे पुनर्स्थापित पृष्ठ कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे और कोश में बने रहकर बाधा पैदा कर रहे थे। उन्हें हटाना पड़ा, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। |
− | धीरे-धीरे जब आप कोश की पूरी प्रणाली को समझ जाएंगे तो आपके मन में इस तरह के सवाल नहीं उठेंगे कि क्यों आपके द्वारा बनाए गए पन्ने को पहले हटाना पड़ा था। आप जब किसी कविता का नाम कवि के पन्ने पर जोड़ते हैं तो कोशिश करिए कि उसमें कोई वर्तनी की ग़लती यानी प्रूफ़ की ग़लती न रह पाए, क्योंकि कविता के नाम में कोई ग़लती रह जाने पर हमें वह पन्ना हटाकर फिर से उसी नाम का दूसरा पन्ना (बिना ग़लती के) बनाना पड़ता है। 'मुलाकात' कविता में आपने 'क़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'क' लिखा था। और 'खुदा' कविता में 'ख़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'ख'। इसीलिए जब मैंने यह ग़लती ठीक की तो नए पन्ने बनाने पड़े थे। आपको लगा कि मैंने आपके पन्ने हटा कर अपने बना दिए हैं। ऎसा नहीं है। अनिल भाई, आप "हाल ही में हुए बदलाव" में जाकर अपने नाम के साथ 'योगदान' लिखा हुआ देखेंगे। | + | धीरे-धीरे जब आप कोश की पूरी प्रणाली को समझ जाएंगे तो आपके मन में इस तरह के सवाल नहीं उठेंगे कि क्यों आपके द्वारा बनाए गए पन्ने को पहले हटाना पड़ा था। आप जब किसी कविता का नाम कवि के पन्ने पर जोड़ते हैं तो कोशिश करिए कि उसमें कोई वर्तनी की ग़लती यानी प्रूफ़ की ग़लती न रह पाए, क्योंकि कविता के नाम में कोई ग़लती रह जाने पर हमें वह पन्ना हटाकर फिर से उसी नाम का दूसरा पन्ना (बिना ग़लती के) बनाना पड़ता है। 'मुलाकात' कविता में आपने 'क़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'क' लिखा था। और 'खुदा' कविता में 'ख़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'ख'। इसीलिए जब मैंने यह ग़लती ठीक की तो नए पन्ने बनाने पड़े थे। आपको लगा कि मैंने आपके पन्ने हटा कर अपने बना दिए हैं। ऎसा नहीं है। अनिल भाई, आप "हाल ही में हुए बदलाव" में जाकर अपने नाम के साथ 'योगदान' लिखा हुआ देखेंगे। नीचे का उदाहरण देखें : |
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+ | इस योगदान शब्द पर क्लिक करें तो वह पन्ना खुल जाएगा, जहाँ कोश में आपके द्वारा किए गए सारे योगदान का रिकार्ड स्थाई तौर पर रहता है। आप वहाँ जाकर हमेशा अपना योगदान देख सकते हैं। तकनीकी तौर पर कभी-कभी किन्हीं कारणों से हमें कुछ पन्ने हटाने पड़ते हैं, लेकिन जो आवश्यक पन्ने होते हैं वे कभी नहीं हटाए जाते। आप देख लीजिए हेराल्ड पिंटर की आपके द्वारा अनूदित कविताएँ अपनी जगह पर हैं, इसके बावजूद भी कि मैंने आपके द्वारा पुनर्स्थापित दोनों पन्नों को फिर से हटा दिया है। | ||
+ | आप aniljanvijay को यानि मुझे स्काईप पर या गूगल टाक पर ढूँढ कर कभी मुझ से बात करें। आप से बात करके अच्छा लगेगा। आपके बारे में विस्तार से जानने की इच्छा भी है। नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ। | ||
+ | हाँ, चलते-चलते याद आया, आप अच्छे अनुवाद करते हैं। मैंने आपके लेखों के अनुवाद भी पढ़े हैं और कविताओं के भी। आपका ब्लाग भी देखा है। | ||
+ | सादर | ||
+ | अनिल जनविजय | ||
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+ | आदरणीय अनिल जनविजय जी, | ||
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+ | आपके तुरंत उत्तर के लिए आभारी हूँ। क्योंकि सदस्य नाम नहीं था तथा मैंने भी लेखक के मुख्य पृष्ठ पर जा कर सही से नहीं देखा इसलिए कारण पूछने की नौबत आई। पुराने (और बहुत से नये) कड़ुवे अनुभव भी अपना असर दिखाते हैं। | ||
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+ | मैं यथासंभव अपना योगदान जारी रखूंगा। आशा है कविताकोश हिंदी कविता के लगभग सारे भंडार को एक जगह उपलब्ध कराके एक मिसाल बन सकेगा। आज की तारीख में भी यहाँ ऐसा संग्रह तैयार हो चुका है जैसा शायद कम ही पुस्तकालयों में मिलेगा। हम जैसे ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर में काम करने वालों को इससे नई उम्मीद बंधती है - पाठक की दृष्टि से तो ये खजाने जैसा है ही। | ||
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+ | - अनिल एकलव्य | ||
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+ | == एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध == | ||
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+ | एकलव्य जी, | ||
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+ | [[एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध]] काफ़ी लम्बी रचना जान पड़ती है। आप इसे ३-४ हिस्सों में बांट दीजिये। इससे पन्ने के लोड होने में आसानी होगी और परिभ्रमण में भी। | ||
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+ | शुभाकांक्षी | ||
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+ | --[[सदस्य:सम्यक|सम्यक]] २०:५८, ३० जनवरी २००९ (UTC) | ||
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+ | == 'एक अंतर्कथा' के बारे में == | ||
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+ | मैं भी इस बारे में सोच रहा था। चार भागों में कर देना ठीक रहेगा। |
05:47, 31 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
प्रिय भाई अनिल एकलव्य जी! आज आप से बातचीत की शुरूआत हो रही है। हम कविता कोश से जुड़े सभी लोग कोश में आपके द्वारा किए जा रहे काम को देखकर बेहद प्रसन्न हैं और आपकी सक्रियता की प्रशंसा करते रहते हैं। आप अच्छा काम कर रहे हैं। हम लोग आभारी हैं। आगे भी ऎसे ही सक्रिय रहें। जैसे ही आपके मन में कोई सवाल आए, हमसे तुरन्त कविता कोश के पते पर ई०मेल से सम्पर्क करें। कविता कोश का ई० मेल पता कोश के मुखपृष्ठ पर लिखा है। अनिल जी, हेराल्ड पिंटर की वे कविताएँ किसी तक़नीकी ख़ामी के कारण हो सकता है मुझे हटानी पड़ी होंगी। लेकिन मैंने हेराल्ड पिंटर का खाता खोलकर देखा तो उनके नाम में वे कविताएँ पहले से ही उपस्थित हैं और अनुवादक के रूप में आप ही का नाम लिखा है। इसलिए इस बार फिर से आपके द्वारा पुनर्स्थापित दोनों पृष्ठ मैंने हटा दिए हैं। आपके वे पुनर्स्थापित पृष्ठ कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे और कोश में बने रहकर बाधा पैदा कर रहे थे। उन्हें हटाना पड़ा, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। धीरे-धीरे जब आप कोश की पूरी प्रणाली को समझ जाएंगे तो आपके मन में इस तरह के सवाल नहीं उठेंगे कि क्यों आपके द्वारा बनाए गए पन्ने को पहले हटाना पड़ा था। आप जब किसी कविता का नाम कवि के पन्ने पर जोड़ते हैं तो कोशिश करिए कि उसमें कोई वर्तनी की ग़लती यानी प्रूफ़ की ग़लती न रह पाए, क्योंकि कविता के नाम में कोई ग़लती रह जाने पर हमें वह पन्ना हटाकर फिर से उसी नाम का दूसरा पन्ना (बिना ग़लती के) बनाना पड़ता है। 'मुलाकात' कविता में आपने 'क़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'क' लिखा था। और 'खुदा' कविता में 'ख़' की जगह बिना बिन्दु वाला 'ख'। इसीलिए जब मैंने यह ग़लती ठीक की तो नए पन्ने बनाने पड़े थे। आपको लगा कि मैंने आपके पन्ने हटा कर अपने बना दिए हैं। ऎसा नहीं है। अनिल भाई, आप "हाल ही में हुए बदलाव" में जाकर अपने नाम के साथ 'योगदान' लिखा हुआ देखेंगे। नीचे का उदाहरण देखें : (फर्क) (इतिहास) . . सदस्य वार्ता:212.69.114.2; १५:२३ . . (+१०) . . Eklavya (वार्ता | योगदान | अवरोधित करें) इस योगदान शब्द पर क्लिक करें तो वह पन्ना खुल जाएगा, जहाँ कोश में आपके द्वारा किए गए सारे योगदान का रिकार्ड स्थाई तौर पर रहता है। आप वहाँ जाकर हमेशा अपना योगदान देख सकते हैं। तकनीकी तौर पर कभी-कभी किन्हीं कारणों से हमें कुछ पन्ने हटाने पड़ते हैं, लेकिन जो आवश्यक पन्ने होते हैं वे कभी नहीं हटाए जाते। आप देख लीजिए हेराल्ड पिंटर की आपके द्वारा अनूदित कविताएँ अपनी जगह पर हैं, इसके बावजूद भी कि मैंने आपके द्वारा पुनर्स्थापित दोनों पन्नों को फिर से हटा दिया है। आप aniljanvijay को यानि मुझे स्काईप पर या गूगल टाक पर ढूँढ कर कभी मुझ से बात करें। आप से बात करके अच्छा लगेगा। आपके बारे में विस्तार से जानने की इच्छा भी है। नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ। हाँ, चलते-चलते याद आया, आप अच्छे अनुवाद करते हैं। मैंने आपके लेखों के अनुवाद भी पढ़े हैं और कविताओं के भी। आपका ब्लाग भी देखा है। सादर अनिल जनविजय
आदरणीय अनिल जनविजय जी,
आपके तुरंत उत्तर के लिए आभारी हूँ। क्योंकि सदस्य नाम नहीं था तथा मैंने भी लेखक के मुख्य पृष्ठ पर जा कर सही से नहीं देखा इसलिए कारण पूछने की नौबत आई। पुराने (और बहुत से नये) कड़ुवे अनुभव भी अपना असर दिखाते हैं।
मैं यथासंभव अपना योगदान जारी रखूंगा। आशा है कविताकोश हिंदी कविता के लगभग सारे भंडार को एक जगह उपलब्ध कराके एक मिसाल बन सकेगा। आज की तारीख में भी यहाँ ऐसा संग्रह तैयार हो चुका है जैसा शायद कम ही पुस्तकालयों में मिलेगा। हम जैसे ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर में काम करने वालों को इससे नई उम्मीद बंधती है - पाठक की दृष्टि से तो ये खजाने जैसा है ही।
- अनिल एकलव्य
एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध
एकलव्य जी,
एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध काफ़ी लम्बी रचना जान पड़ती है। आप इसे ३-४ हिस्सों में बांट दीजिये। इससे पन्ने के लोड होने में आसानी होगी और परिभ्रमण में भी।
शुभाकांक्षी
--सम्यक २०:५८, ३० जनवरी २००९ (UTC)
'एक अंतर्कथा' के बारे में
मैं भी इस बारे में सोच रहा था। चार भागों में कर देना ठीक रहेगा।