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"अक्षर / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत
 
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|संग्रह=घर एक यात्रा / श्रीनिवास श्रीकांत
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|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
 
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23:52, 17 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

अक्षर कभी नहीं मरते
तभी उनका नाम है अ-क्षर
उन्हें जीवित रखते हैं
स्वर और व्यंजन
वे बनाते हैं
समय के महानद पर सेतु
जिस पर से गुजरता है इतिहास
जातियाँ
एक के बाद एक
बनती बिगड़ती संस्कृतियाँ
समय की डूब
समय की उठान
अतीत से भविष्य की ओर
सरकते आसमान

भाषकार जब करता है पद विन्यास
अक्षर बनाते हैं शब्द
शब्द देते हैं अर्थ
शब्दों से बनती है भाषा

भाषा सम्वाद है
पर अर्थ हैं मूक
धीरे धीरे जज़्ब होते
स्मृतियों भरे जहन में

जमीन के रोम-रोम में
होता है संचित जल
बनाता उसे उर्वर

शब्द कभी-कभी
अर्थों की छत्रियाँ लिये
उतरते हैं
कागज़ के पृष्ठ पर
बुनते हैं
रचना का मोज़ेइक
भाव उसमें होते हैं
सन्निहित

अन्दर की आँख
करती है दोनों को पुनजीर्वित
वह पहचानती है विचारों को
तय करती है उनकी अस्मिता

विचार नापते हैं काग़ज पर
समय
शब्दों के पाँवों चलते
जिनमें ध्वनि है कर्ता
वही है
इन्द्रियस्थ पदचाप।