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"रुमाल / गोरख पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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वे नहीं जानते किसने इन्हें बुना
 
वे नहीं जानते किसने इन्हें बुना
 
जा कर कई दुकानों से ख़ुद इन्हें चुना
 
जा कर कई दुकानों से ख़ुद इन्हें चुना
तह-पर तह-करते खूब सम्हाल-सम्हाल
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तह-पर -तह करते ख़ूब सम्हाल-सम्हाल
आफ़िस जाते जेबों में भर दो-चार
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ऑफ़िस जाते जेबों में भर दो-चार
 
हैं नाक रगड़ते इनसे बारम्बार
 
हैं नाक रगड़ते इनसे बारम्बार
जब बास डाँटता लेते एक निकाल
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जब बॉस डाँटता लेते एक निकाल
 
सब्ज़ी को लेकर बीवी पर बिगड़ें
 
सब्ज़ी को लेकर बीवी पर बिगड़ें
 
या मुन्ने की माँगों पर बरस पड़ें
 
या मुन्ने की माँगों पर बरस पड़ें
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भावुक हैं, पारटियों को गाली तेज़
 
भावुक हैं, पारटियों को गाली तेज़
 
दे देते हैं कोनों से पोंछ मलाल
 
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गबड़ियों से आजिज़ भरते जब आह
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रंगीन तहों से कोई तानाशाह
 
रंगीन तहों से कोई तानाशाह
 
रच कर सुधार देते हैं हाल.
 
रच कर सुधार देते हैं हाल.
  
 
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20:12, 16 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

 
नीले पीले सफेद चितकबरे लाल
रखते हैं राम लाल जी कई रुमाल
वे नहीं जानते किसने इन्हें बुना
जा कर कई दुकानों से ख़ुद इन्हें चुना
तह-पर -तह करते ख़ूब सम्हाल-सम्हाल
ऑफ़िस जाते जेबों में भर दो-चार
हैं नाक रगड़ते इनसे बारम्बार
जब बॉस डाँटता लेते एक निकाल
सब्ज़ी को लेकर बीवी पर बिगड़ें
या मुन्ने की माँगों पर बरस पड़ें
पलकों पर इन्हें फेरते हैं तत्काल
वे राजनीति से करते हैं परहेज़
भावुक हैं, पारटियों को गाली तेज़
दे देते हैं कोनों से पोंछ मलाल
गड़बड़ियों से आजिज़ भरते जब आह
रंगीन तहों से कोई तानाशाह
रच कर सुधार देते हैं हाल.