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"हास्य-रस -चार / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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तालीम लड़कियों की ज़रूरी तो है मगर | तालीम लड़कियों की ज़रूरी तो है मगर | ||
ख़ातूने-ख़ाना हों, वे सभा की परी न हों | ख़ातूने-ख़ाना हों, वे सभा की परी न हों | ||
− | + | जो इल्मों-मुत्तकी हों, जो हों उनके मुन्तज़िम | |
उस्ताद अच्छे हों, मगर ‘उस्ताद जी’ न हों | उस्ताद अच्छे हों, मगर ‘उस्ताद जी’ न हों | ||
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− | तालीमे-दुख़तराँ से ये | + | तालीमे-दुख़तराँ से ये उम्मीद है ज़रूर |
नाचे दुल्हन ख़ुशी से ख़ुद अपनी बारात में | नाचे दुल्हन ख़ुशी से ख़ुद अपनी बारात में | ||
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क़द्रदानों की तबीयत का अजब रंग है आज | क़द्रदानों की तबीयत का अजब रंग है आज | ||
− | बुलबुलों | + | बुलबुलों को ये हसरत, कि वो उल्लू न हुए. |
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19:47, 20 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
तालीम लड़कियों की ज़रूरी तो है मगर
ख़ातूने-ख़ाना हों, वे सभा की परी न हों
जो इल्मों-मुत्तकी हों, जो हों उनके मुन्तज़िम
उस्ताद अच्छे हों, मगर ‘उस्ताद जी’ न हों
तालीमे-दुख़तराँ से ये उम्मीद है ज़रूर
नाचे दुल्हन ख़ुशी से ख़ुद अपनी बारात में
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिले-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिनको पढ़ के बच्चे बापको ख़ब्ती समझते हैं
क़द्रदानों की तबीयत का अजब रंग है आज
बुलबुलों को ये हसरत, कि वो उल्लू न हुए.