भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पवाड़ा / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | आओ चले उस गाँव | |
− | + | जहाँ झड़ते अनायास | |
− | + | पके फल - डाल-डाल छाँव- छाँव | |
− | + | चलो जीयें उस पेड़ की छाँव | |
− | + | जिसका वह एक फल | |
− | + | ‘झाँणों- मनसा’ ने | |
− | + | चखा था आधा-आधा | |
− | + | रह गए थे देखते | |
− | + | छूट गया था बीज | |
+ | उसी पेड़ की छाँव | ||
+ | बीज -दर –बीज | ||
+ | उगते रहे किनते ही शाखी | ||
+ | झड़ते रहे कितने फल | ||
+ | स्तब्ध रहा पहाड़ों का | ||
+ | परस्पर टकराना | ||
+ | थक गया | ||
+ | गाँव से गाँव सुलगना | ||
+ | गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव | ||
− | + | काया हो जाओ | |
− | + | तुम उस फल की | |
− | + | ||
− | + | बीज हो जाता हूँ मैं | |
− | + | और उगते रहें बार-बार | |
− | + | घाटी-घाटी गाँव-गाँव | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
01:30, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
आओ चले उस गाँव
जहाँ झड़ते अनायास
पके फल - डाल-डाल छाँव- छाँव
चलो जीयें उस पेड़ की छाँव
जिसका वह एक फल
‘झाँणों- मनसा’ ने
चखा था आधा-आधा
रह गए थे देखते
छूट गया था बीज
उसी पेड़ की छाँव
बीज -दर –बीज
उगते रहे किनते ही शाखी
झड़ते रहे कितने फल
स्तब्ध रहा पहाड़ों का
परस्पर टकराना
थक गया
गाँव से गाँव सुलगना
गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव
काया हो जाओ
तुम उस फल की
बीज हो जाता हूँ मैं
और उगते रहें बार-बार
घाटी-घाटी गाँव-गाँव