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22:32, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तीन साल हो गए वो रात भूलती नहीं कभी
तुम मेरे पास आए थे और मैंने दोस्त
पंजाब का हाल पूछा था
तुमने कहा रेल के सफर में कश्मीर याद आया था
कई साल पहले जब गए थे किसी ने तुमसे पूछा था
इंडिया से आए हो?
तुम जवाब नहीं दे पाए कट गए थे
उस दिन जवाब में तुमने कहा
बंबई आते हुए रास्ते में ऐसा ही लगा
चौरासी के दंगे हो के चुके थे और तुम जैसे इंडिया आ रहे थे
बहुत देर तक मेरे पास कहने को कुछ नहीं था
तुम्हीं ने चुप्पी तोड़ी
नया नाटक लिखा है
शहर बीमार है
एक प्रति तुम्हारे लिए लाया हूँ
तुम्हारी आंखों में देखने की हिम्मत नहीं थी
नाटक के पन्ने पलटता रहा
तुम्हीं ने कहा कुछ सुनाओ
मैंने लम्बी कविता सुनाई
मेरे भीतर का शहर
उसमें का शहर भी बीमार था
जमे हुए निर्जीव खून के थक्के परेशान करने लगे थे
तुमने कहा दोस्त अब नींद नहीं आएगी कुछ और सुनाओ
मेरे प्यारे दोस्त मेरे पास ऐसा कुछ नहीं था
जो नींद ला सकता
तुम्हीं ने कहा शिव बटालवी का गीत सुनाता हूँ
उन्हीं दिनों तुम एक और नाटक लिख रहे थे
शिव जिसमें एक किरदार था
किसी तरह वो रात बीती
बीतने को तो दोस्त तीन साल भी बीत गए
मेरे पास कहने को अभी भी कुछ नहीं हुआ
तुम्हें लगा था इँडिया आए थे
मेरे घर का रास्ता भी वही है
मैं कहां जाऊँगा।
आत्मजीत=पँजाबी नाटककार