"मुम्बाई दर्शन / अनूप सेठी" के अवतरणों में अंतर
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> अचानक कुछ हुआ और बस छोड़ दी ठोकर म...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अनूप सेठी | |रचनाकार=अनूप सेठी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
अचानक कुछ हुआ और बस छोड़ दी | अचानक कुछ हुआ और बस छोड़ दी |
22:33, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अचानक कुछ हुआ और बस छोड़ दी
ठोकर मारी फ्रूटी की हरी डिबिया उछली
जहाँ गिरी कबूतर उड़ा वहां से
वहाँ बहुत सारे कबूतर उठते थे बैठते थे
लोग दाना डालते थे
चुँधियाती ग्राहकों को उकसाती
दुकानों में से पैदल चल निकला
बदहवास फलांगा बाजार
रिहायशी शांत सी आबादी आई
शहर में जैसे पहली बार शाम हो रही थी
मकानों के ऊपर निर्लिप्त धूसर चांद था
लोग चले जा रहे थे
किशोर किशोरियां साइकिलें टनटनाते गुजर रहे थे
संकरे से मैदान में छोकरे क्रिकेट खेल रहे थे
फुटपाथ पर गृहस्थियों के चूल्हे जलने लगे थे
ऐसी ही थी पर यह मेरी कालोनी नहीं थी
पसीना आया पैरों में पानी पड़ गया
जैसे ही अपनी बस दिखी
आक्रामक तन गए हाथ पांव
संकरे दरवाजे में
लोगों के सिरों बाहों थैलों के बीच
घुसेड़ दिया सिर नेवले की तरह
कई लोग पीछे थे गिरने से बचाने को
यूँ बीच रास्ते में जोखिम उठाना
बस छोड़ने का दुनिया देखने का
आसान है भला!
(1990)