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"माचिस की डिबिया / सरोज परमार" के अवतरणों में अंतर
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घासलेट के कुप्पे से सट कर | घासलेट के कुप्पे से सट कर | ||
पी लिया होगा अंधेरा | पी लिया होगा अंधेरा | ||
− | कुछ तीलियाँ गिराने के एवज | + | कुछ तीलियाँ गिराने के एवज में |
खाया होगा तमाचा मुन्नी ने | खाया होगा तमाचा मुन्नी ने | ||
कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली | कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली | ||
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पल्लू को छू कर | पल्लू को छू कर | ||
तन्दूरी चिकन बनाया होगा | तन्दूरी चिकन बनाया होगा | ||
− | किसी भरी पूरी लड़की को. | + | किसी भरी-पूरी लड़की को. |
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14:14, 28 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
सड़क पर पड़ी
ख़ाली डिबिया
माचिस की
समेटे है अपने इर्द-गिर्द
एक इतिहास
इसकी किसी तीली ने
चूल्हा सुलगाया होगा
छौंक की गंध घर-भर की
भूख को चमकाया होगा
किसी तीली से सुलगी होगी बीड़ी
खनजी होगी हँसी
बतियायी होंगी चिंताएँ कल की
एक तीली ने
घासलेट के कुप्पे से सट कर
पी लिया होगा अंधेरा
कुछ तीलियाँ गिराने के एवज में
खाया होगा तमाचा मुन्नी ने
कुछ फुस्स हुई कुछ सील गई पड़ी-गली
भरी बरसात में
कौन जाने किसी तीली ने
पल्लू को छू कर
तन्दूरी चिकन बनाया होगा
किसी भरी-पूरी लड़की को.