भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहत इन्दौरी |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> उसकी कत्थ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | उसकी कत्थई | + | उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब |
− | चाक़ू वाक़ू, | + | चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब |
− | जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे रूठे हैं | + | जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं |
− | चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब | + | चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब |
− | मुझसे बिछड़ कर वह भी | + | मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है |
− | + | फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब | |
+ | |||
+ | आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है | ||
+ | कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब | ||
+ | </poem> |
00:58, 13 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब
चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब
आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब