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"माँ से सुनी दँत कथा / तेज राम शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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12:14, 4 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

टी.वी. पर
प्रजनन की प्रक्रिया देखते
उभर पड़ता है
अंधेरे ओबरे के कोने में
चिमनी के मंद प्रकाश में
माँ का वेदना से कराहता
स्वेद भरा मुख
सो रहे पशु भी
संभावना से
चौकन्ने हो गए होंगे


मेरे रोने के उन्होंने
क्या अर्थ लगाए पता नहीं
पर दादी
घर भर सूंघती रही
अमर बेल की सुगंध
और भगदड़ में टटोलती रही कुछ

दादा को समय की गणना करते हुए
तारे शायद कुछ ज्यादा ही
चमकते हुए दिखे होंगे
पर्वत की ओट में
घाटी के सन्नाटे को चीरती
बंदूक की आवाज़ से
पता नहीं पिता
अपनी उपलब्धि का
उदघोष कर रहे थे
या करा रहे थे नवजात को
भविष्य के लिए तैयार

यह सब कुछ
याद कर लेने के बाद भी
पता नहीं मुझे क्यों
आज याद हो आती है
माँ से बचपन में बार-बार सुनी
वह दंतकथा
जिसमें एक महारानी
जनती थी सिलबट्टा।