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"जितनी भी है दीप्ति / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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13:19, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
धीरे धीरे झर गई मिट्टी
रहा बचा केवल जड़-रेशा
अंश-अंश कर दमक घट रही
बादल सिर पर छाए
उतर गए सब बीच राह में
हुई उलार अब गाड़ी
हाथ आँचने उठे नागरिक
कब की टूटी पाँत
खाते-खाते दाँत झड़े पर
पत्तल पकड़े रहा किनारे
चारों ओर अँधेरा छाया
मैं भी उठूँ जला लूँ बत्ती
जितनी भी है दीप्ति भुवन में
सब मेरी पुतली में कसती ।