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"कुछ पाने की चिंता / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर
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अपने ही विचारों में उलझता | अपने ही विचारों में उलझता | ||
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यहाँ वहाँ | यहाँ वहाँ | ||
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क्या तुम्हें भी ऐसा अनुभव हुआ कभी, | क्या तुम्हें भी ऐसा अनुभव हुआ कभी, | ||
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जो अब याद नहीं | जो अब याद नहीं | ||
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बात किसी अच्छे मूड से हुई थी | बात किसी अच्छे मूड से हुई थी | ||
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कि लगा कोई पंक्ति पूरी होगी | कि लगा कोई पंक्ति पूरी होगी | ||
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पर्ची के पीछे | पर्ची के पीछे | ||
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उस पल साँस ताज़ी लगी | उस पल साँस ताज़ी लगी | ||
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और दुनिया नई, | और दुनिया नई, | ||
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यह सोचा | यह सोचा | ||
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और साथ हो गई कुछ पाने की चिंता | और साथ हो गई कुछ पाने की चिंता | ||
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मैं धकेलता रहा वह और पास आती गई, | मैं धकेलता रहा वह और पास आती गई, | ||
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अच्छा विचार नहीं बचा सकता | अच्छा विचार नहीं बचा सकता | ||
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मुझे अपने आप से भी, | मुझे अपने आप से भी, | ||
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उसे खोना चाहता हूँ | उसे खोना चाहता हूँ | ||
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नहीं जीना चाहता | नहीं जीना चाहता | ||
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किसी और का अधूरा सपना | किसी और का अधूरा सपना | ||
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17:37, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
अपने ही विचारों में उलझता
यहाँ वहाँ
क्या तुम्हें भी ऐसा अनुभव हुआ कभी,
जो अब याद नहीं
बात किसी अच्छे मूड से हुई थी
कि लगा कोई पंक्ति पूरी होगी
पर्ची के पीछे
उस पल साँस ताज़ी लगी
और दुनिया नई,
यह सोचा
और साथ हो गई कुछ पाने की चिंता
मैं धकेलता रहा वह और पास आती गई,
अच्छा विचार नहीं बचा सकता
मुझे अपने आप से भी,
उसे खोना चाहता हूँ
नहीं जीना चाहता
किसी और का अधूरा सपना
रचनाकाल: 30.8.2006