भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"संवाद / रेखा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
  
 
|रचनाकार=रेखा  
 
|रचनाकार=रेखा  
|संग्रह=|संग्रह=चिन्दी-चिन्दी सुख / रेखा  
+
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा  
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>

02:55, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण


तने में गड़ी
कंटीली बाड़ से कहता है पेड़-
कहां तक छलोगी
बहुत गहरा है मेरा सब्र
पेड़ से पूछती है बाड़
सुनी नहीं क्या तुमने राजाज्ञा
इस देश और उस देश की सीमा पर
कंटीली बाड़ लगाई जाएगी-
जहां से भी गुजरा है
राजा का अश्वमेधी घोड़ा
धरती ने पेश किया है
दो टूक कलेजा
तुम ही क्यों तने हो
निषेध बनकर?
तने में गड़ी बाड़ से
कहता है पेड़-
मेरे शरीर को छीलकर
निकल जाओ तुम
पर ऊध्र्वगामी शाखाओं जैसा
मेरा व्यापक चिंतन
मिट्टी के पोर सहलाती
मेरे ममत्व की जड़ें
बदल सकती नहीं
को राजाज्ञा
इनके विस्तार की दिशा।